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________________ मगवतीसत्रे काम् कोशाम्रनामकवृक्षस्य स्थूलाम् अतिकठिनां गण्डिकां यष्टिकामित्यर्थः 'मुक्कं' शुष्काम् न तु आर्द्राम् आर्द्रकाष्ठस्य छेदने तथा परिश्रमो न भवति यथा अतिशुष्कस्य अतः शुष्कामिति विशेषणम् , 'जडिलां' जटिलाम् जटायुक्तामित्यर्थः 'गठिल्लं' ग्रन्थिलाम्-ग्रन्थिमतीमित्यर्थः 'चिक्कणं' चिकणां-स्निग्धाम् रूझायाच्छेदनं सरलं भवति अतः स्निग्धामिति विशेषणम् 'वाइद्धं' व्यादिग्धां वक्रां न तु सरलाम् अथवा व्यादिग्धाम् विशिष्टद्रव्योपदिग्धाम् , 'अपत्तियं' अपात्रिकाम् अविद्यमानाधाराम् निराधारस्य छेदनम् अशक्यसंपायमिव भवतीति एताघशी गण्डिका-काष्ठखण्डम् 'मुंडेग परसुणा कमज्जा' मुण्डेन परशुना अपकामेत मुण्डः कुण्ठिलच्छेदनासमर्थः परशु:-कुठारस्तेन अपक्रामेत् अतीक्ष्णपर शुना ताइकाष्ठोपरि प्रहारं कुर्यात् , 'तए णं से पुरिसे' ततः खलु महारकर. मानन्तरम् स पुरुषः ‘महंताई महंताई सदाई करेई' महतो महतः शब्दान् करोति गंडिका को शामनामक वृक्ष की स्थूल-अतिकठिन-लकडी को जो कि 'सुक्कं,' सूखी है, गीली नहीं हैं, क्योंकि गीली लकड़ी में छेदन में ऐसा परिश्रम नहीं होता है जैसा परिश्रम सूखी लकडी के छेदन में होता हैं। 'जटिला' जटिल-जटा युक्त है, गंठिल्लं' गांठ युक्त है, 'चिक्कणं' स्निग्ध है, रूक्ष नहीं है, क्योंकि रुक्ष लकड़ी के छेदन में सरलता होती है । 'वाइद्धं' वक्र है, सरल-सीधी नहीं है। अथवाव्यादिग्धं विशिष्ट द्रव्य से उपदिग्ध-लेपा है । 'अपत्तियं' अपात्रिक अविद्यमान आधारवाली है, यह विशेषण इसलिये दिया है कि निरा. धार लकड़ी का छेदन अशक्य जैसा होता है । (मुंडेण परमुणा) मुंड. परशु से-मोथरी-विना धार की कुल्हाडी से-काटता है । 'तए णं से पुरिसे 'काटते २ वह पुरुष 'महंताई महंताई, सद्दाई करेइ' बीच बीच में ગંડિકાને એટલે કે શામ નામના વૃક્ષની અત્યંત કઠણ લાકડીને કે જે “सुक्कं" सूक्षी छ. भीमी अन ४५वामा सो परिश्रम ५७। नथी, परिश्रम की सीन कामां थाय छे. “जटिल" . as वाणेछे. “गंठिल्लं" isqागु छे.. चिक्कणं " यिाशवाणुहै. भ ३क्ष सापामा सतावा छे. “व्यादिग्धां" वाछ. अथवा व्याधि सरले विशेष प्रारना द्रव्योना खेपवाणुछ." अपत्तियं" અપાત્રિક એટલે કે આધાર વગરનું છે. આ વિશેષણ એટલા માટે આપવામાં આવ્યું છે કે નિરાધાર લાકડું કાપવામાં મુશ્કેલીવાળું હોય છે. તેવા લાકડાને ५२४थी-मेर घार विनानी मुहाथी । " तएणं से पुरिसे" पतi पता ते ५३५ " महंताई (२) सदाई करेइ" वयम वयमा हु।२२। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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