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________________ प्रमेयन्द्रिका टीका श० १६ १० ४ ० १ कर्मक्षवनिरूपणम् १०९ 'अट्ठमभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेई' अष्टमभक्तक उपचासत्र मार्ग श्रमणो निग्रंथः कर्म निर्जस्यति. 'एबश्यं कामं निरसु नेरच्या वाससयसहस्सेण वा, वाससयसहस्सेहिं वा, वासकोडीए वा खस्यति' एतावत्कं कर्म नरकेषु नैरयिकाः वर्षशतसहस्रेग वा, वर्ष शतसही , वर्ष कोटया वा क्षपयन्ति, यावत् संख्यकानि कर्माणि साधुर्विनाशयति तावत्संख्यकानि कर्माणि किं नरके वर्त मानाः नारकाः वर्षकोटया क्षयन्ति तेषां कर्मणां स्वात्ममदेशेभ्यो दीकरणे समर्थाः भवन्ति नवेति प्रश्नः, भगगनाह-'णो इणढे समझे नापार्थः समर्थः ? नोमयो सादृश्यं संघटते इत्यर्थः उभयोः सादृश्याभावे कारणमने वक्ष्यते । 'जाव. कर देता है उतने कर्मों की निजरा नरक में वर्तमान नारक जीव दुःखों का वेदन करते हुए भी अधिक से अधिक एक लाख वर्ष भर में भी नहीं कर पाते हैं। पुनः गौतम प्रभु से पूछते है-'जावयं णं भंते ! कम्म' हे भदन्त ! जितने कर्मों की 'अट्ठमभत्तिए समणे निग्गंथे निज्जरेह" तीन उपवास करनेवाला श्रमण निर्ग्रन्थ निर्जरा कर देता है'एवइयं कम्मं निरासु नेरझ्या वाससयसहस्से ण था, वाससयसहस्से हिं वा, वासकोडीए वा खवयंति' उत्तने कर्मों की निर्जरा क्या नरकों में वर्तमान नारक जीव एक लाख वर्ष में अनेक लाखों वर्षों में अथवा एक करोड वर्ष में भी कर देते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं--'यो इण्टे सम?' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् तीन उपवास करता हुआ श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों को नष्ट कर देता है उतने कर्मों को नरक में वर्तमान नारक जीव एक करोड़ वर्ष भर में भी नष्ट કરવાવાળા શ્રમણ નિગ્રંથ જેટલા કર્મોની નિર્જરા કરે છે તેટલા કર્મોની નિર્જર નરકમાં રહેલ નારક જીવ એક લાખ વર્ષમાં પણ કરી શકતા નથી ५श गोतम स्वामी पूछे छे , “जावइयण भंते ! कम्म" भवन् ! २८क्षा भनी “अट्टमभत्तिए समणे निग्गंथे निज्जरेइ" त्र पास ४२वापामा श्रम नि" नि२॥ ४२ छे. “ एवइय कम्मं निरइसु नेरइया वापसय. सहस्सेणं वा, वाससयसस्सेहिं वा वासकोडीए वा खवयंति" मेटा भी નિર્જરા નરકમાં રહેલ નારક જીવ શું એક લાખ વર્ષમાં કે અનેક લાખ वर्षाम, ४७ वर्षामा ४ छ १ तेना उत्तरमा प्रभु ४३ छे “णो इणद्वे सम?" 3 गौतम At म समय नथी अर्थात् ३ ५१ास ४२नार શ્રમણ નિર્થ થ જેટલા કર્મોને નાશ થડા સમયમાં પણ કરે છે તેટલા કર્મો ને નરકમાં રહેલ નારક જીવ એક કોડ વર્ષમાં પણ નાશ કરી શકતા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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