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________________ भगवतीसूत्रे यावत्-रूपि मनो भवति, नो अरूपि मनो भवति, एवम् नो सचित्तं मनो भवति, अपितु अचित्तं मनो भवति, एवमेव नो मनोजीवो भवति, अपितु अजीवं मनो भवति, तथैव जीवानां मनो भवति नो अजीवानां मनो भवति इति भावः, गौतमः पृच्छति-'पुब्धि भंते ! मणे, मणिज्जमाणे मणे ?' हे भदन्त ! किं मननात् पूर्व मनो भवति ? किंवा मन्यमानं मननविषयी क्रियमाणं मनो भवति ? भगबानाह-' एवं जहेव भासा' हे गौतम ! एवं-पूर्वोक्तरीत्या यथैव भाषा प्रतिपादिता तथैव मनोऽपि प्रतिपत्तव्यम् , तथा च नो मननात् पूर्व मनो भवति, अपितु मन्यमान-मननविषयी क्रियमाणं मनो भवति नो वा मनः समयव्यतिभी विषय में कहनी चाहिये । यावत् मनरूपी होता है, अरूपी नहीं होता है, इसी प्रकार सचित्त भी नहीं होता है-अपि तु अचित्त होता है । इस प्रकार वह मन जीवरूप नहीं होता है, अजीवरूप होता है, मन जीव को होता है, अजीवों को नहीं होता है। ___अब गौतम प्रभु ऐसा पूछते हैं-'पुटिव भंते ! मणे, मणिज्जमाणे मणे' हे भदन्त ! मनन से पहिले मन होता है ? या मनन विषयी क्रियमाण, मन होता है-अर्थात् मनन करते समय मन होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं जहेव भासा' हे गौतम! पूर्वोत्तरीति से जिस प्रकार भाषा कही है उसी प्रकार से मन भी जानना चाहिये। तथा च-मनन के पहिले मन नहीं होता है अपितु मन्यमानमनन विषयी क्रियमाण-मन होना है-इसी प्रकार से वह मन संबंधी समय के निकल जाने के बाद मन नहीं होता है। अब गौतम પ્રરૂપણ ભાષા વિષે કરવામાં આવી છે, એવી જ પ્રરૂપણ મન વિષે પણ સમજવી એટલે કે મન રૂપી હોય છે, અરૂપી હોતું નથી એ જ પ્રમાણે તે અચિત્ત હોય છે, સચિત્ત હેતું નથી એજ પ્રમાણે મન જીવરૂપ હોતું નથી, અજીવરૂપ હોય છે. જેમાં મનને સદભાવ હોય છે, અજીમાં મનને સદ્ભાવ હોતું નથી. गौतम स्वामीना प्रश्न-“ पुध्विं भंते ! मणे, मणिज्जमाणे मणे०१" है ભગવન શું મનનનાં પહેલાં મન હોય છે ખરું? કે મનન કરતી વખતે भन डाय छ ? तन उत्त२ माता महावीर प्रभु -" एवं जहेव भासा" गौतम ! म मामतमा भाषा विषे रवामां माव्यु छे, એવું જ કથન મન વિષે પણ સમજવું એટલે કે મનના પહેલાં મન હતું નથી, પરન્તુ મળ્યમાન-મનન વિષયી ક્રિયા કરતું–મન હોય છે. એ જ પ્રમાણે મનન સંબંધી સમય વ્યતીત થઈ ગયા બાદ મન હેતું નથી. શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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