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________________ भगवतीसूत्रे पुढवीए उकोसकाल जाव उन्नट्टित्ता दोच्चपि इत्थियासु उववज्जिहिइ' तत्रापिस्त्रीषु खलु शस्त्रवध्यः-शस्त्रवधाहः सन् दाहव्युत्क्रान्त्या-दाहपीडया कलमासे कालं कृता द्वितीयमपि वारम् , षष्ठयां तमायाम् पृथिव्याम् उत्कृष्ट कालस्थितिके नरके नैरयिकतया उत्पत्स्यते, स खलु ततोऽनन्तरम् उद्धृत्य, द्वितीयमपि वारं स्त्रीषु उत्पत्स्यते 'तत्थ विणं सत्थवज्झे जाव किच्चा पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए उक्कोसकाल जार उघट्टित्ता उरएसु उववज्जिहिद' तत्रापिस्त्रीषु खलु शस्त्रवध्यः-शस्त्रवधाहः सन् यावत् दाहव्यु क्रान्त्या कालमासे कालं कृत्वा पञ्चम्यां धूम मभायां पृथिव्याम् उस्कृष्टकाल स्थितिके नरके नरयिकतया उत्पत्स्यते, खल्छ ततोऽनन्तरम् उत्य उरगेषु-सर्पेषु उत्पत्स्यते, 'तत्थ वि णं सत्यवज्झे जाव किचा दोचंपि पंचमाए जाव उच्चट्टित्ता जाव दोच्चपि छट्ठीए तमाए पुढवीए उकोसकाल जाव उत्पट्टित्ता दोच्चापि इत्थियासु उपजिजहिइ' वहां पर भी शस्त्रवधाहे होकर वह दाह की व्युत्क्रान्तिसे कालमास में काल करके द्वितीय पार भी छट्ठी तमा पृथिवी में उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले नरक में नैरयिक रूप से उत्पन्न होगा। फिर वह वहां से निकल कर अनन्तर समय में ही पुनः स्त्रीपर्याय से उत्पन्न होगा। 'तत्थ विणं सत्थवज्झे जाव किच्चा पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए उक्कोसकाल जात्र उध्वहिता उरएसु उववजिजहिइ' वहां पर भी वह शस्त्रवधार्ह हुआ यावत् दाह की व्युत्क्रान्ति-पीडा से कालमास में काल कर पंचमी धूमप्रभापृथिवी में उस्कृष्ट काल की स्थितिवाले नरक में नैरयिकरूप से उत्पन्न होगा। वहां से निकलकर फिर वह सर्षों में उत्पन्न होगा। 'तत्थ विण सत्यउत्पन्न 4N. “ तत्थ वि ण सत्थवज्झे दाह जाव दोच्चपि छट्टीए पुढवीए उक्कोसकाल जाव उवट्टित्ता दोच्चपि इत्थियासु उवव जिहिइ" त्यो ५५५ सखવધાઈ થઈને દાહની પીડાથી કાળ કરીને ફરી છઠ્ઠી તમ પ્રભા નરકમાં ઉત્કટકાળની સ્થિતિવાળા નરકાવાસમાં નારક રૂપે ઉત્પન્ન થશે ત્યાંથી નીકળીને | श्रीपर्यायमा पन्न थरी. “ तत्थ वि णं मत्थवज्झे जाव किच्चा पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए उक्कोसकाल जाव उव्यट्टित्ता उरएसु उववन्जिहिह" તે પર્યાયમાં પણ તે શસ્ત્રવધાઈ થઈને દાહની પીડાથી કાળ કરીને પાંચમી ધૂમપ્રભા નરકમાં ઉત્કૃષ્ટ કાળસ્થિતિવાળા નરકાવાસમાં નારક રૂપે ઉત્પન્ન થશે. ત્યાંની આયુસ્થિતિ પૂર્ણ થતાં ત્યાંથી નીકળીને તે સર્પોમાં ઉત્પન્ન થશે. " तत्थ वि ण सत्थवज्झे जाव किच्चा दोच्चपि पंचमाए पुढवीए जाव उव्व. શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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