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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० २२ गोशालकगतिवर्णनम् ८५९ दोच्चपि उरसु उववज्जिहिद्द' तत्रापि खलु - उरगेषु शस्त्रत्रध्यः - शस्त्रैर्वधार्हः सन् यावत् दाहव्युत्क्रान्त्या कालमासे कालं कृत्वा द्वितीयमपि वारं पञ्चम्यां यावत्धूमप्रभायां पृथिव्याम् उत्कृष्टकालस्थितिके नरके नैरयिकतया उत्पत्स्यते, स खलु ततोऽनन्तरम् उद्घृत्य द्वितीयमपि वारम् उरगेषु उत्पत्स्यते, 'जाव किञ्चा चउत्थीए पंकपमा पुढवीर उक्कोसकाळद्वियंसि जाव उच्चट्टित्ता सीहेसु उबबज्जिeिs' यावत् तत्रापि खलु उरगेषु शस्त्रवध्यः सन् दाहव्युत्क्रान्त्या कालमा से कालं कृत्वा चतुर्थ्यां पङ्कप्रभायां पृथिव्याम् उत्कृष्टकालस्थितिके नरके यावत् नैरयिकतया उत्पत्स्यते स खलु ततोऽनन्तरम् उद्श्य सिंहेषु उत्पत्स्यते, 'तत्थ विणं सत्यवज्झे तव जाव किया दोच्चपि चउत्थीए पंक जाव उव्बहित्ता दोच्चपिसीहेसु उववज्जिदिह' तत्रापि खलु - सिंह नवे शस्त्रवध्यः सन् तथैव , - वझे जाव किच्चा दोच्चपि पंचमाए पुढबीए जाव उच्चद्दित्ता दोच्चपि उरएसु उववज्जिहिद्द' वहां पर भी वह शस्त्रवधार्ह होता हुआ यावत् दाह की व्युत्क्रान्ति से कालमास में काल कर द्वितीय वार भी पंचमी पृथिवी में धूमप्रभापृथिवी में उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले नरक में नारक की पर्याय से उत्पन्न होगा। वह फिर वहां से निकल कर मर कर द्वितीय बार भी सर्पों में उत्पन्न होगा 'जाव किच्ना च उत्थीए पंकल्प भाए पुढवीए को कालट्ठियंसि जाब उच्चट्टिता सीहेसु उववज्जिहिई' यावत् उरगों में भी वह शस्त्रवबोर्ह होता हुआ दाह की व्युत्क्रान्ति से काल मास में काल करके चतुर्थी पंकप्रभा पृथिवी में - उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले नरकावास में नारक की पर्याय से उत्पन्न होगा, वह वहाँ से भी मर कर अनन्तर समय में सिंहों में उत्पन्न होगा । " द्वित्ता, दोच्चपि उरपसु उजवज्जिहि ” त्यां पशु ते शस्त्रधा थाने हाडनी પીડાના અનુભવ કરીને કાળધમ પામીને ક્ી ધૂમપ્રભા નરકમાં ઉત્કૃષ્ટ કાળસ્થિતિવાળા નરકાવાસમાં નારક રૂપે ઉત્પન્ન થશે. ત્યાંથી નીકળીને ખીજી વાર પણ તે સર્પ રૂપે ઉત્પન્ન થશે. जाव किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए उक्कोस कालट्ठियांस जाव उव्वट्टित्ता सीहेसु उववज्जिहिइ" त्यां प પૂર્વોકત પ્રકારે કરી કાળ કરીને તે ચેાથી પ'કપ્રભા પૃથ્વીમાં ઉત્કૃષ્ટ કાળ સ્થિતિવાળા નરકાવાસમાં નારક રૂપે ઉત્પન્ન થશે. ત્યાંની આયુસ્થિતિના ક્ષય थतां, त्यांथी नीउजीने ते सिडामां उत्पन्न थशे. “ तत्थ विणं सत्थवझे ata जब किव्वा दोच्चपि चउत्थीप पंकजाव उव्वट्ठिना, दोच्चंषि सीद्देसु उबव શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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