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________________ ८५६ भगवती सूत्रे वाहणे णं राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहये जात्र भासरासीकर समाणे' हे गौतम ! विमलशाहनः खलु राजा सुमंगलेन अनगारेण सहयो यावत् सरथः ससारथिः भस्मराशीकृतः सन् अहे सतमार पुढवीए उक्कोसकाल डिइयंसि नरयंसि नेरइयare उववज्जिहि' अधः सप्तम्यां पृथिव्याम् उत्कृटकालस्थिति के नरके- नरका वासे नैरयिकतया उत्पत्स्यते, 'से णं तओ अनंतरं उन्बट्टित्ता मच्छेतु उववज्जिहि स खलु विमलवाहनः, ततः - अधः सप्तमनरकावासात् अनन्तरम् उच्य निःसृत्य, मत्स्येषु उत्पत्स्यते 'से णं तत्थ सत्यवज्ज्ञे दाहवककंतीए कालमा से कालं किवा दोच्चपि अहे सत्तमाए पुदवीए' स खलु विमलवाहनः तत्र - मत्स्येषु शस्त्रवध्यः - शस्त्रैर्वधाः सन् दाहव्युत्क्रान्त्या - दाहपीडा कालमासे कालं कृत्वा द्वितीयमपि वारम् अधः सप्तम्यां पृथिव्याम् 'उकोसकालद्वियंसि नरगंसिनेरइयहोगा ? तब इसके उत्तर में प्रभु ने कहा- गोषमा ! विमलवाहणे णं राधा सुमंगलेणं अणगारेण सहए जाव भासरासीकए समाणे' हे गौतम! सुमंगल अनगार अब विमलवाहन राजा को घोडे सहित, रथसहित और सारथिसहित भस्म कर देंगे तब वह विमलवाहन राजा असत्तमाए पुढवीए उकोसकालडिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिए' फिर वह विमलवाहन उस अधःसप्तमी पृथ्वी के नरकावास में उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले नरकवास में नरfuकरूप से उत्पन्न होगा 'से णं तओ अनंतरं उच्चद्वित्ता मच्छे उबबज्जिfer' फिर वह अनन्तर समय में निकल कर मत्स्यों में उत्पन्न होगा । ' से णं तस्थ सत्यवज्झे दाहकतीए कालमासे कालं किच्चा, दोच्चपि अहे सत्तमाए पुढवीए' वहां वह विमलवाहन राजा शस्त्रों से मारने योग्य होकर दाह की पीडा से कालमास में काल करके द्वितीय 4 महावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा ! विमलवाहणे णं राया सुमगलेणं अणगाणं सहर जान भाखरासी कर समाणे अहे सत्तमा पुढत्रीए उकोसकालट्ठिइनिरखि नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ " हे गौतम! सुमंगल अशुगार विभલવાહન રાજાને જ્યારે ઘેડા, રથ અને સારથિસહિત ભરમીભૂત કરી નાખશે. ત્યારે તે વિમલવાહન રાજા અ4:સપ્તમી નરકના નરકાવાસમાં ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળા નારક રૂપે ઉત્પન્ન થશે જ્યારે ત્યાંના આયુ, ભવ અને स्थितिमा क्षय उरशे, त्यारे त्यांथी नीम्जीने मत्स्यामां उत्पन्न थशे से णं तत्थ सत्यवज्झे दाहवक्कंतीर कालमासे कालं किच्या, दोच्चपि अहेसत्तमाए पुढवीए” त्यां ते शखश्री भारवा योग्य मानीने हाडनी थोडाथी अजना अवसरे आज इरीने इरीथी अधः सप्तभी पृथ्वीमां “ उक्कोसकाल ट्विइयंखि શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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