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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ ३० १ सू० १९ रेवतीदानसमीक्षा ७८९ ६ अथ कुक्कुटशब्दमधिकृत्य विचार्यते - कुक्कुटशब्दस्य 'बीजपूरक' इति प्रसिद्ध वनस्पतिरूपोऽर्थः सुनिषण्ण नाम कशा कवनस्पतिरूपोऽर्थः कुक्कुटो वा शाल्मलिवृक्षो अत्र अन्यार्थस्य बाधात् अनुपयोगित्वाच्च 'बीजोरा' इति भाषाप्रसिद्धः बीजपूरकरूप एवार्थः प्रकृते परिगृह्यते तदस्यैव प्रकरणादिना उक्तरोगमशमनोपयोगित्वात् । एतेन सदस्य फळमध्यवर्ति मागो 'गूदा' इति भाषा प्रसिद्धोऽर्थ परिगृह्यते इत्यपि सिद्धम् अस्या एव सुश्रुतसंहितायास्तत्रापि प्रमाणत्वात् प्रज्ञापनानिष्पन्न हो जाता है बात में स्वार्थ में 'क' प्रत्यय करने पर कृतक ऐसा शब्द बन जाता है । इस कृतक शब्द का अर्थ संस्कृत ( उपस्कृत) या भावित ऐसा होता है वहीं यहां गृहीत हुआ है। (६) कुक्कुट शब्द को लेकर विचार-यद्यपि कुक्कुट शब्द के अर्थ सुनिवण्गनामक वनस्पति, शाल्मलिवृक्ष, मातुलिङ्ग ऐसे होते हैं। परन्तु यहां पर अन्यार्थ की बाधा होने से और अनुपयोगी होने से 'बिजौरा ' यही अर्थ कुक्कुट शब्द का गृहीत हुआ है । क्योंकि प्रकरणवश उक्तरोग के प्रशमन में यही उपयोगी माना गया है। इसके गुण इस प्रकार से कहे गये हैं 'स्यान्मातुलुङ्गः कफवातहन्ता' इत्यादि । यहां जो 'मांस' ऐसा शब्द आया है उससे उस फलके मध्य भाग में रहा हुआ भाषाप्रसिद्ध 'गूदा' यह अर्थ लिया गया है । यह बात भी सिद्ध हो जाती है । क्योंकि इस बात की साक्षिका यहां यही सुश्रुत , श भने छे. त्यार माह रखना अर्थभां" क" अत्यय लगाउवाथी 'मृत' शब्द जने छे. या द्रुत पहनो अर्थ 'संस्कृत' (उपस्कृत - तैयार रेलु ) अथवा 'भावित ' थाय छे से अर्थ सहीं श्रणु उरवामां मान्यो छे. (६) 'फ्रुट' शी अपेक्षा स्पष्टी ४२ ले " हुम्कुट " शहना આટલા અથ થાય છે–(૧) સુનિષણુ નામની વનસ્પતિ, (ર) શાલ્મક્ષિવૃક્ષ અને (૩) માતુલિંગ (એક પ્રકારના મીઠા લીંબુંનુ વ્રુક્ષ) પરન્તુ અહી' અન્ય અર્થા અનુપયેગી તથા અસ`ગત હાવાથી તેના ખોરા” આ અર્થ જ ગ્રહણુ કરવામાં આવ્યા છે, કારણ કે અહી જે પિત્તજવરના ઉલ્લેખ છે તેના શમનને માટે · મોરોં' જ ઉપયાગી ગણાય છે. તેના ગુણુ આ प्रमाणे छे - " स्यान्मातुलुङ्गः कफवात हन्ता" त्यिाहि. "6 અહી' જે ‘માંસ' શબ્દને પ્રયેગ થયા છે, તે શબ્દ દ્વારા તે ફળની અંદરના ગર્ભ` જ ગ્રહણુ કરાયા છે, એ વાત પણ સિદ્ધ થાય છે. કારણ કે સુશ્રુતસંહિતામાં પણ આ પત્રના અથ “ કુળની અંદરના ગભ જ ' પ્રકર શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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