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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० १६ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ७१३ भवत्वेतद्रूपम् , इति भावः, 'तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आजीवियाण थेराणं संगारं पडिच्छइ' ततः खलु स गोशालो मललिपुत्रः आजीविकानां स्थविराणां 'संगारं' सङ्केतं प्रतीच्छति-स्वीकरोति 'संगारं पडिच्छित्ता अंबकूणगं एगंतमन्ते एडेई' संकेतं प्रतीष्य-स्वीकृत्य, आम्रकूणम्-आम्रास्थिकम् , एकान्ते, एडयतिस्थापयति, 'तए णं से अयंपुले आजीवियोवासए जेणेव गोसाले मंखलिपुने तेणेव उवागच्छइ' ततः खलु सोऽयंपुलः आजीविकोपासको यत्रैव गोशालो मङ्खलिपुत्र आसीत् , तत्रैव उपागच्छति, 'उवागच्छित्ता गोसालं तिक्खुत्तो जाव पज्जुवासई' उपागत्य गोशालं मङ्कलिपुत्रं त्रि:कृत्वो-वारत्रयं यावत्-आदक्षिणपदक्षिणं कृत्वा वन्दते नमस्पति, वन्दित्वा नभस्थित्वा, विनयेन शुश्रूषमाणः उन्होंने उससे ऐसा कहा, अयंपुल आपके पास आरहा है अतः हे भगवन् ! आप छोड दीजिये-ऐसा करने पर यह रूप आपका खुल जावेगा। 'तए णं से गोताले मंखलिपुत्ते आजीवियाणं थेराणं संगारं पडिच्छई' इस प्रकार कहे जाने पर मंखलिपुत्र गोशाल ने आजीविक स्थविरों के संकेत को मान लिया। 'संगारं पडिच्छित्सा अबकूणगं एगतमंते एडेई' और संकेत मानकर फिर उसने आम की गुठली को एकान्त स्थान में रख दिया। 'तए णं से अयंपुले आजीवियोवासए जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छई' इसके बाद आजीविकोपासक अयंपुल जहां पर मंखलिपुत्र गोशाल थे-वहां पर आया। 'उवाग. च्छित्ता गोसाल तिक्खुत्तो जाव पज्जुवासह' वहां आकरके उसने गोशाल की तीन प्रदक्षिणाएँ की। यावत् उन्हें वन्दना नमस्कार कियावंदना नमस्कार कर फिर उसने बडे विनय के साथ उनकी पर्युपासना પિલ ખૂલી નહીં પડવાને કારણે અયંપુલને આપના પ્રત્યેને વિશ્વાસ ટકી २. “तए णं से गोसाले मखलिपुत्ते आजीवियाण थेराण संगार पडिच्छ" આ પ્રમાણે જ્યારે સંકેત કરવામાં આવ્યું, ત્યારે મખલિપુત્ર ગોશાલે તે मालवि स्थविशन सतने भानी बीधे “संगारं पडिच्छित्ता अंबकूणगं एगंतमंते एडेइ" भनी संतानुसार तर शनी त गोटीरात स्थानमा भूसीधी . " तर णं से अयंले आजीवियोवासए जेणेव गोसाले मखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छद" त्या२ मा विपास अयपुर भ. लिपुत्र गोशास armi ! तो, त्या माये.. “ उवागच्छित्ता गोसालं तिक्खुत्तो जाव पज्जुवासइ” त्यो न तो सनी १५ प्रक्षि! ४२१, વંદણાનમસ્કાર કર્યા વંદણાનમસ્કાર કરીને ખૂબજ વિનયપૂર્વક તે તેમની भ० ९० શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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