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________________ ७१२ भगवतीस्त्रे पदेशको गोशालो मलिपुत्रः प्रभुः समर्थः खल्लु इदम् एतद्रूपम् व्याकरणं-प्रश्नं व्याकर्तुम् , अस्य उत्तरं दातुं समर्थ इति, 'तए णं से अयंपुले आजीवियोवासए आजीविएहि थेरेहिं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुढे उठाए उठेइ ततः खलु सः अयंपुल: आजीविकोपासकः आजीविकैः स्थविरैः, एवम्-उक्तरीत्या उक्तः सन् हृष्टतुष्टः उत्थया-उत्थानेन उत्तिष्ठति, उठेत्ता जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव पहारेत्थगमणाए' उत्थाय, यत्रै-गोशालो मङ्खलिपुत्रः आसीत्-तत्रैव प्राधारयत्-पस्थितवान् , गमनाय, 'तए णं ते आजीचिया थेरा गोसालस्त मंखलिपुत्तस्स अंचकूणगपडावणट्टयाए एगंतमंते संगारं कुव्वंति' ततः खलु ते आजीविकाः स्थविराः गोशालस्य मंस्खलिपुत्रस्य आम्रकूणपातनार्थम् एकान्ते विजने भूभागे यावत् अयंपुलो गोशालान्ति के नागच्छति तावत् 'संगारं' ति संकेतं कुर्वन्ति अयंपुलो भवस्समीपे आगच्छति, अतो भगवान् आम्रकूणिकं परित्यजतु तथा सति संवत इस प्रकार के इस प्रश्न का उत्तर देने के लिये समर्थ हैं। 'तएणं ते अयंपुले आजीवियोवासए आजीविएहि थेरे हिं एवं वुत्ते समाणे हतुढे उठाए उद्देई' इसके बाद उन आजीधिक स्थविरों से इस प्रकार कहा गया वह आजीविकोपासक अयंपुल बहुत खुश हुआ-एवं संतुष्टचित्त हुआ और अपने आप वहां से उठा-उठेत्ता जेणेव गोसाले मखलित्ते-तेणेव पहारेत्थ गमणाए' उठकर वह जहां मंखलिपुत्र गोशाल थे उस और चलने का विचार करने लगा अर्थात् उसी ओर वह चल दिया-'तएणं ते आजीविया थेरा गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अबकूणगपड़ावणट्ठयाए एगंतमंते संगारं कुवंति' इसके बाद आजीविक स्थविरों ने मंखलिपुत्र गोशाल के लिये हाथ में रही हुई आम की गुठली को जब तक अयं. पुल नहीं आपाता है, तब तक फेंक देने के लिये संकेत किया अर्थात् वान समर्थ छे. "तए णं.ते अयंपुले आजीवियोवासए आजीविएहि थेरेहिं एवं बुत्ते समाणे हदुतुढे उढाए उठुइ " ते मा०१४ स्थविरानु मा २नु थन સાંભળીને તે આજીવિકપાસક અયંપુલને ઘણું જ હર્ષ અને સંતોષ થયો. तपातानी जत्थान Asतथी a४यो, “उद्वेत्ता जेणेव गोसाले मंस्खलिपुत्ते तेणेव पहारेत्थ गमणाए" त्यार घa भ मलिपुत्र शनी पासे । माटे ७५४ये.. “ तए णं ते आजीविया थेरा गोसालस्म मंखलिपुत्तस्स अंबकूणगपडावणदयाए एगंतमंते संगारं कुव्वंति" त्या२ मा मावि स्थविशये भभ. લિપત્ર શાલકને એ સંકેત કર્યો કે અયંપુલ તમારી પાસે આવે તે પહેલાં તમારા હાથમાં રહેલી કેરીની ગેટલી ફેંકી દે, એવું કરવાથી આપની શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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