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भगवतीसूत्रे तस्य अयपुत्रस्य आजीविकोपासकस्य अन्यदा कदाचित् पूर्वरात्रापररात्र कालसमये कुटुम्बजागरिकां जाग्रतः, अयमेतद्रपः आध्यात्मिकः-आत्मगतः, यावत्-चिन्तितः कल्पितः, पार्थितः, मनोगतः संकल्पः समुदपद्यत-समुत्पन्न:-'कि संठिया हल्ला पण्णता ?' किं संस्थिता-किमाकारा हल्ला-गोवालिका तृणसमाना कीटविशेषरूपा प्रज्ञप्ता, 'तए णं तस्स अयंपुलस्स आजीविओवासगस्स दोच्चपि अयमेयारूचे अन्झथिए जाव समुपन्नित्या-ततः खलु तस्य अयंपुलस्य आजीविको पासकस्य द्वितीयमपि वारम् अयमेतद्रूपः-वक्ष्यमाणस्वरूपः, आध्यात्मिक:आत्मगतः, यावत्-चिन्तितः, कल्पितः पार्थितः, मनोगतः संकल्पः समुदपधतसमुत्पन्न:-'एवं खलु ममं धम्मायरिए, धम्मोवदेसए गोसाले मंखलिपुत्ते' एवं खलु पूर्वोक्तरीत्या, मम धम्माचार्यः, धर्मोपदेशको गोशालो मङ्खलिपुत्रः, 'उप्पन्नणाणदसणधरे जाव सम्मन्नू सम्बदरिसी, इहेब सावत्योए नयरीए हालाहलाए कुंभजाव समुप्पजिस्था' आजीविकोपासक उस अयंपुल को एक दिन जब कि वह कुटुम्ब जागरिका से मध्यरात्रि के समय जग रहा था उसे निद्रा नहीं आ रही थी-इस प्रकार का यह आत्मगत संकल्प यावत् उत्पन्न हुआ। (यहां यावत् शब्द से 'चिन्तित, कल्पित, प्रार्थित, एवं मनोगत' इन संकल्प के विशेषणों का ग्रहण हुआ है। 'किं संठिया हल्ला पणत्ता' तृण के समान कीटविशेषरूप जो हल्ला-गोवालिका है-उसका आकार कैसा कहा गया है? 'तए णं तस्स अयंपुलस्स आजीविभोवासगस्त दोच्चपि अयमेधाख्वे अज्झथिए जाव समुपजिजस्था' दूसरी पार फिर उस आजीविकोपासक अयंपुल को ऐसा यह आत्मगत संकला यावत् उत्पन्न हुभा (यहां पर भी यावत् शब्द से संकल्प के चिन्तित, कल्पित प्रार्थित और मनोगत' ये विशे. षण गृहीत हुए हैं । 'एवं खलु मम धम्मायरिए धम्मोवदेसए गोसाले मंवलिपुत्ते' मंखलिपुत्र गोशाल मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक हैं। 'उप्प. કરી રહ્યો હતે-તેને કૌટુંબિક બાબતેના વિચારે ચડવાને લીધે ઊંઘ આવતી ન હતી. ત્યારે તેના મનમાં આ પ્રકારને ચિતિત, કપિત, પ્રર્થિત અને मनात स४६५ अपन थये:-“कि संठिया हल्ला पण्णता" तुना समान કિટવિશેષ રૂપ જે હલ્લા (ગેવાલિકા) છે, તેને આકાર કે પ્રરૂપિત થયે छ!" तए णं तस्स अयंपुलस्स आजीविओवासगस्त दोचंपि अयमेयारूवे अझ थिए जाच समुप्पजित्था " भी पार तेन भनमा मेवा चिन्तित, पित, प्रथित, मनोगत पिया 64न थयो 2-“ एवं खलु मम धम्मायरिए धम्मोवदेसए गोसाले मंखलिपुत्ते" म मलिपुत्र गोशास मारा धर्मायाय, धपि.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧