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________________ भगवतीसूत्रे वज्रसाश्यात् मद्यपानादिपापस्य, पच्छादनार्थतायै-आच्छादनाप, इमानिवक्ष्यमाणानि अष्टौ चरमाणि-चरमपदवाच्यानि, प्रज्ञापयति-प्ररूपयति, 'तं जहाचरिमे पाणे, चरिमे गीये, चरिमे नट्टे चरिमे अंजलि कम्मे तद्यथा चरमं पानम्न खलु मम पुनरिदं भविष्यतीति कृत्वा चरमम् पानकं भवति १ चरमं गीत-मम गानं२, चरमम् नृत्य-मम नर्तनम्३, चरमं मम अञ्जलिकर्म यद् हालाहलां प्रति भवतीति ४ । 'चरिमे पोक्खलसंवट्टए महामेहे, चरिमे सेयणए गंधहत्थी, चरिमे महासिलावटए संगामे -चरमः पुष्करसंवतको महामेघो भवति५, चरमः जैसे मद्यपानादि पाप को ढकने के लिये ये चरमपदवाच्य आठ वस्तुएँ कही हैं। 'तं जहा'-जो इस प्रकार से हैं-'चरिमे पाणे, चरिमे गेये, चरिमे नहे, चरिमे अंजलिकम्मे' चरमपान-अन्तिम पान-यह मेरा पुन: नहीं होगा। इस प्रकार करके इस अपने पान को चरमपान रूप से उसने कहा है । चरमगेय-यह मेरो गाना फिर नहीं होगा। इस प्रकार करके यह मेरा चरम गाना है ऐसा उसने कहा है। चरमनृत्य यह मेरा नर्तन (नाचना) अन्तिम है-फिर मेरा यह नर्तन नहीं होगा-इसलिये अपने इस नर्तन को उसने चरम नर्तन कहा है। हालाहला कुंभकारिणी के प्रति जो मेरा यह अंजलिकर्म है वह अन्तिम है मोक्ष में जाने के बाद यह नहीं होगा-इसीलिये इसे उसने चरम अंजलिकर्म कहा है । 'चरिमे पोक्खलसंवट्टए महामेहे, चरिमे सेयणए गंधहस्थी, चरिमे महासिलाटए પિતાના વાના જેવા મદ્યપાનાદિ દેને ઢાંકવાને માટે આ પ્રમાણે ચરમ पवाय मा १३तुमानी ५३५५। ७री २हा छ-" तंजहा" मा वस्तुये। नीय प्रमाणे छ-" चरिमे पाणे, परिमे गेये, चरिमे नट्टे, चरिमे अंजलिकम्मे" (૧) ચરમપાન-અન્તિમપાન-હવે આ પ્રકારના મદ્યાદિ પદાર્થોનું પાન મારે કરવું નહીં પડે, આ પ્રમાણે કહીને તે પિતાના મદ્યપાનને ચરમપાન રૂપ ही रह्यो छे. (२) २२भगेय-मरे भीतहु ॥ रह्यो छु, त मा ચરમ ગીત છે. ફરી તે ગીત ગવાશે નહીં. આ પ્રમાણે તે પિતાના ગીતને अन्तिमगेय ३५ ४७ छ. (3) यमनृत्य-भा३ मा नृत्य १३॥ 22 नही આ પ્રમાણે તે પિતાના નૃત્યને અન્તિમનૃત્ય કહે છે. (૪) હાલાહલા કુંભકારિણીને હું હાથ જોડીને જે પ્રાર્થના કરી રહ્યો છું, તે પણું અન્તિમ છે મેક્ષમાં ગયા બાદ તે અંજલિકમ ફરી થવાનું નથી, એમ કહીને તેણે તે मन २२भ [ छ. “ चरिमे पोक्खलसंवट्टए महामेहे, चरिमे सेयगए गंधहत्थी, चरिमे महासिलाकंटए संगामे" ०४२ सवत नाभन भामे શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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