SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 692
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७८ भगवतीसूत्रे टिकाम् , काष्ठमणिमित्यर्थः, काडूयमानः-यांयन् , पुटतटीम् पुतप्रदेशम् प्रस्फोट यन, हस्तौ विनिर्धधन्-कम्मयन् , द्वाभ्यां पादाम्यां भूमिम् कुट्टयन् 'हा हा अहो ! होऽहमस्पीति कट्ठ समगस भगवो महावीरस्स अंतियाभो कोढयाओ चेहयाओ पडिनिक्वमई' हा हा !!! अहो ! हतोऽहमस्मीति कृता-उक्त्वा विमृश वा श्रमणस्य भगवतो महाबोरस्य अन्तिकात्-सनीपात् , कोष्ठकात् चैत्यात् पतिनिष्क्रामति-निर्गच्छति 'पडिनिक्खमित्ता जेणेव सावत्थी नयरी जेणे हालाहलाए कुंमकारीए कुंभकारावणे तेणेत्र आगच्छ!, उवागच्छिता' प्रतिनिष्क्रम्यनिर्गत्य, यत्रा श्रावस्ती नगरी आसीत् , यत्रै हालाहायाः कुम्भकार्याः कुम्भकारापणम्-आप्नोत् तत्र आगच्छति, उपागम्य हाल हालाए कुंभकारीए कुंभ को नोंच डाला। अवडु कंडूयमाणे पुति पकोडेमाणे हत्थे विणिधुणमाणे दोहि वि पएहिं भूमि कोहमाणे' गर्दन के पीछे भाग को वह खुजलाने लगा और दोनों पगों को हाथों से ठोकता हुआ वह जमीन को दोनों पैरों से खू इता २ हा हा ! अहो ! होऽहमस्ती तिकटु समणस भगवो महावीरस्स अंतिया ओ, कोट्ठयाओ चेयामो पडिनिक्खमई' हाय ! हाय ! अब मैं मरा इस प्रकार विचार कर या कहकर श्रमण भगवान महावीर के पास से उस कोष्ठक चैत्य से निकला और 'पडिनिवमित्ता जेणेव सावत्थी नयरी जेणेव हालाहलाए कुभकारीए कुभकाराणे तेणेव उवागच्छई' निकल कर जहां श्रावस्ती नगरी थी और उसमें भी जहां हालाहला कुभकारिणी का कुंभकारा. पग था वहां वह आया। 'उवागछि त। हालाहलाए कुभकारीए d. " आईं कंडूयमाणे पुपलिं पकोडेमागे हत्थे विगिद्रुणमाणे दोहि वि परहि भूमि कोटमणे" तो नपान मा ५४३. मांडये, બને પગ પર હાથ છે. કવા લાગ્યા અને પિતાના બન્ને પગ વડે જમીનને भूत भूते! “हा, हा ! हओऽमस्तीति कट्ट समगरल भाव ओ महावीरन अंतिपाआ, कोदुवाओ चेइयाओ पडिनिखमइ” 'डाय, डाय ! हवे મારૂ આવી બન્યું,” આ પ્રકારને વિચાર કરીને, તે શ્રમણ ભગવાન મહાवीरनी पासेयी सन १४, थैत्यमांशी ५३१२ नीय“पडिमिक्खमित्ता जेणेव सावत्यी नयरी, जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुभ कारावणे तेणेव उवागच्छई' त्यांथी नीजी ते श्रावस्ती नगरीमा सeal हुना२शीनु ४२१५५ (८) यां तु यi भाव्ये 'उबागच्छिता हालाहलाए कुंभकारीर कुंभकारावर्णसि अंबकूणहत्थगए मज्जपाणगं શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy