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भगवतीसूत्रे मयम् , देवतम् , चैत्यम् , पर्युपास्ते, 'किमंग पुण तुमं गोसाला ! भगवया चेव पन्चाविए, भगवया चे मुंडाविए, भगवया चेव सेहाविए, भगवया चेव सिक्खा विए, भगवया चेव बहुस्सुईकए, भगवो चेव मिच्छं विप्पडियन्ने ?' हे गोशाल! किमङ्ग पुन:-किमुत वक्तव्यम् , यत्-त्वम् , भगवता-महावीरेणैव, प्रब्राजितः दीक्षा ग्राहितोऽसि, भगवता-महावीरेणैव मुण्डितः-मुण्डने प्रयोजितोऽसि, मुण्डि. तस्यैव तस्य शिष्यत्वेन अङ्गीकारात् , भगवता-महावीरेणैव, सेधितः-व्रतित्वेन सिद्धीकृतोऽसि, तस्य व्रतिसमाचारसेवायां भगवत एवं कारणभूतत्वात् , भगवता महावीरेणैव शिक्षितः-तेजोलेश्यादि ग्रहणोपदेशदानद्वारा दीक्षा ग्राहितोऽसि, भगवता महावीरेणैव बहुश्रुतीकृत:-बहुश्रुतिकः कृतोऽसि, एवं सत्यपि त्वं भगवतो-महावीरस्यैव मिथ्यात्वम्-मिथ्याभावं विप्रतिपन्नोऽसि ? तद्विरुद्धाचरणे पासना करता है । 'किमंग पुण तुमं गोसाला! भगवयाचेव पव्वाविए, भगवया चेव मुंडाविए' परन्तु हे गोशाल ! तुम्हारे विषय में क्या कहा जाप-भगवान् महावीर ने ही तुम्हें दीक्षा दी है, भगवान महावीर ने ही मुण्डित किया है, भगवयाचेव सेहाविए' भगवान् महावीर ने ही तुम्हें मुण्डित करने के कारण शिष्यरूप से अंगीकार किया है। व्रतिरूप से तुम्हें प्रसिद्ध किया है। व्रतिजनों के आचार विचार की सेवा में तुम्हारे प्रति कारण भगवान महावीर ही हुए है, तथा भग. वान महावीर ने ही तुम्हें तेजोलेश्या आदि की प्राप्ति की विधि का उपदेश दिया है-अतः 'भगवया चेव सिक्खाविए' भगवान महावीर ने ही तुम्हें इस विषय में शिक्षित किया है 'भगवया चेव बहुस्सुईकए' भगवान महावीर ने ही तुम्हें बहुत का ज्ञाता किया है। यह ५युपासना ४रे छ. " किमंग पुण तुम गोसाला ! भगवया चेव पव्वाविए, भगवया चेव मुंडाविए" ५२न्तु त ! तमा। विषयमा तो पात શી કરવી ! ભગવાન મહાવીરે જ તમને દીક્ષા આપી છે, ભગવાન મહાવીરે १ तभन भुति र्या छ, “भगवया चेव सेहाविए" सगवान महावीरे । તમને શિષ્ય રૂપે અંગીકાર કર્યા છે, તિરૂપે તમને પ્રસિદ્ધ કર્યા છે, ભગવાન મહાવીરે જ તમને વ્રતિ જનેના આચારવિચારની સેવામાં પ્રવૃત્ત કર્યા છે, અને ભગવાન મહાવીરે જ તમને તેતેશ્યા આદિ પ્રાપ્ત કરવાની विधि मतावी छे, माशते "भगवया चेव सिक्खाविए” भगवान महावीरे
तमन मा विषयमा शिक्षित र्या छ, “भगवया चेव बहुस्सुईकए " ભગવાન મહાવીરે જ તમને બહુશ્રુતના જ્ઞાતા બનાવ્યા છે. આટલું આટલું
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧