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प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० १२ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ६२९ पतिलब्धवान् 'पडिलभेत्ता इमे सत्त पउट्टपरिहारे परिहरामि' प्रतिलभ्य-प्राप्य, इमान्-वक्ष्यमाणस्वरूपान् सप्तमवृत्तिपरिहारान्-शरीरान्तरप्रवेशरूपान् परिहरामि-करोमि-'तं जहा-एणेज्जगस्त, मल्लरामस्स, मंडियस्स, रोहस्स भार. दाइस्स, अज्जुणगस्स गोयमपुतस्स, गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स' तद्यथा-एणेयकस्य, मल्लरामस्य, मण्डिकस्य, रोहस्य, भारद्वाजस्य, अर्जुनकस्य गौतमपुत्रस्य, गोशा. लस्य मंखलिपुत्रस्य शरीरान्तरप्रवेशं कृतवानस्मि, 'तत्थ णं जे से पढमे पउवः परिहारे से गं रायगिहस्स नयरस्स वहिया मंडियकुच्छिसि चेइयंसि उदाइस्स कुंडियायणस्स सरीरं विपजहामि' तत्र खल्लु-सप्तमु प्रवृत्तिपरिहारेषु शरीरान्तर प्रवेशलक्षणेषु, योऽसौ प्रथमः प्रवृत्तिपरिहारः-शरीरान्तरप्रवेशः-शरीरान्तरउक्तस्वस्मिन् खलु प्रथमे शरीरान्तरमवेशरूपे प्रवृत्तिपरिहारे राजगृहस्य नगरस्य बहिः मण्डिककुक्षौ मण्डिककुक्षिनामके चैत्ये उदायिनः कौण्डिन्यायनस्य-कौण्डिपरिहरामि' उसे प्राप्तकर मैने इन सात प्रवृत्तिपरिहारों को किया है। 'तं जहां वे सात प्रवृत्तिपरिहार-शरीरान्तर प्रवेश इस प्रकार से है'एणेज्जगस्स, मल्लरामस्स, मंडियस्स, रोहस्स, भारहाइस्स, अज्जुण. गस्स गोयमपुत्तस्स, गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स' एणेयक के, मल्लराम के, मण्डित के, रोह के, भारद्वाज के, गौतमपुत्र अर्जुन के, और मख. लिपुत्र गोशाल के शरीरों में प्रवेश किया है। 'तत्थ णं जे से पउपरिहारे से णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया मंडिय कुच्छिसि चेइयंसि उदा. इस्स कुंडियायणस्स सरीरं विप्पजहामि' पूर्वोक्त ७ प्रवृत्तपरिहारों में शरीरान्तर प्रवेशों में जो प्रथम प्रवृत्त परिहार कहा गया है, उसमें मैंने राजगृहनगर के बाहर मण्डिक कुक्षि नाम के परिहरामि" त्यार माह में भा सात प्रवृत्ति५:२७२। (शरीरात प्रवेश)
या छे. ते सात प्रवृत्ति५२७।। (शरीरा-त२ प्रवेश) " तंजहा" मा प्रमाणे छ. “ एणेज्जगस्स, मल्लरामस्स, मंडियस्स, रोहस्स, भारदाइस्स, अज्जुणगस्स गोयमपुत्तरस, गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स” (१) सायना, (२) मसरामना, (3) मउतन, (४) राना, (५) मारना , (6) गीतमपुत्र मानना અને (૭) ખલિપત્ર શાલકના શરીરમાં, આ પ્રમાણે ક્રમશઃ સાત शरीराम में प्रवेश य छे. “ तत्थ णं जे से पढमे, पउट्टपरिहारे से ण रायगिहस्स नयरस्स बहिया मंडिर कुञ्छिसि चेइयंसि उदाइस कुडियायणास सरीरं विपजहामि” पूति सात प्रवृत्तिपरिहारीमानी-शरीरात२ प्रवे. શેમાને, જે પહેલે પ્રવૃત્તિપરિહાર કહ્યો છે, તેમાં મેં રાજગૃહ નગરની બહાર મંડિકકુક્ષિ નામના ચિત્યમાં કૌડિન્યોત્રાત્પન્ન ઉદાયીના શરીરને છોડયું
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧