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________________ भगवतीसूत्रे न्यगोत्रोत्पन्नस्य शरीरं विपजहामि-परित्यजामि, 'विपनहेत्ता एणेज्जगस्स सरीरगं अणुप्पविसामि' उदायिनः कौण्डिन्यायनस्य-कौण्डिन्यगोत्रोत्पन्नस्य शरीरं विप्रहाय-परित्यज्य, एणेयकस्य शरीरकम् अनुमविशामि, 'अणुप्पविसित्ता बावीसं वासाइं पढमं पउद्यपरिहारं परिहरामि' एणेषकस्य शरीरकम् अनुपविश्य द्वाविंशति वर्षाणि यावत् प्रथमं प्रवृत्तिपरिहारं परिहारं-शरीरान्तरमवेशं परिहरामि करोमि, शरीरान्तरपरावर्तनं कृतवान् इत्यर्थः, 'तत्थ णं जे से दोच्चे पउदृपरिहारं से उइंडपुरस्स नगरस्स बहिया चंदोयरणंसि चेयंसि एणेज्जगस्स सरीरगं विपजहामि' तत्र खलु सप्तसु प्रवृत्तिपरिहारेषु योऽसौ द्वितीयः प्रवृत्तिपरिहारः उक्तस्तस्मिन्द्वितीये प्रवृत्तिपरिहारे उद्दण्डपुरस्य नगरस्य बहिश्चन्द्रावतरणे चैत्ये एणेयकस्य शरीरकम् विप्रजहामि-परित्यजामि, 'विप्पजहेत्ता मल्लरामस्स सरीरगं अणुप्पविसामि' विप्रहाय परित्यज्य, मल्लरामस्य शरीरकम् अनुपविशामि, 'अणुप्पवि. सित्ता एकवीसं वासाई, दोच्चं पउट्टपरिहारं परिहरामि' अनुपविश्य एकविंशति चैत्य में कौडिन्यगोत्रोत्पन्न उदायी के शरीर को छोडा है । 'विप्प जहेत्ता एणेजगस्स सरीरगं अणुप्पविसामि' और उसे छोड. कर एणेयक के शरीर में प्रवेश किया। 'अणुपविसित्ता बावीसं वालाई पढमं पउपरिहारं परिहरामि' वहां प्रवेश करके मैंने वहां २२ वर्ष तक उस प्रवृत्त परिहार को किया 'तत्थ जे से दोच्चे पउपरिहारे से उइंड पुरस्स नगरस्स बहिया चंदोयरणंसि चेइयंसि एणेज्जगस्त सरीरग विप्पजहामि' पूर्वोक्त सात प्रवृत्तिपरिहारों में जो द्वितीय प्रवृत्ति परिहार कहा गया है । उस द्वितीय प्रवृत्ति परिहार में उद्दण्डपुर नगर के बाहर चन्द्रावतरण चैत्य में एणेयक के शरीर का छोडना है और 'विप्पज. हेत्ता मल्लरामस्स सरीरगं अणुप्पविसामि' उसे छोड़कर मेरा मल्लराम के शरीर में प्रवेश करना है । 'अणुप्पविसित्ता एकवीसं वासाइं दोच्च छ. " विषजहेत्ता एणेज्जगस्स सरीरगं अणुपविसामि" Selhn शरीरने में सोयना शरीरमा प्रवेश घ्या. “ अणुप्पविसित्ता बावीसं वासाइं पढम पउपरिहारं परिहरामि" cli प्रवेश ४शन २२ १५ सुधी ते પ્રવૃત્ત પરિહાર કર્યો-એટલે કે ૨૨ વર્ષ સુધી મારો જીવ તે શરીરમાં રહ્યો. " तत्थ जे से दोच्चे पउट्टपरिहारे से उदंडपुरस्स नयरस्स बहिया चंदोयरणंसि चेडयंसि एणेज्जगस्त सरीरगं विप्पजहामि" वे भी प्रवृत्ति परिहार વર્ણન કરવામાં આવે છે. ઉદંડપુર નગરની બહાર ચન્દ્રાવતરણ ચૈત્યમાં મેં सोयन। शरीरने छ। यु. “विप्पजहेत्ता मल्लरामस्स सरारगं अणुप्पविसामि" शरीर छोडसन में मसरामना शरीरमा प्रवेश श्यो. "अणुप्पविसित्ता શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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