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________________ भगवतीस्त्रे करेंति वा, करिस्संति वा' ततः पश्चात् सिध्यन्ति, बुध्यन्ते, मुच्यन्ते, परिनिर्वान्तिपरिनिर्वाणतां प्राप्नुवन्ति, सर्वदुःखानामन्तम् अकार्वा, कुर्वन्ति वा, करिष्यन्ति वा तत्र महाकल्पप्रमाणमाह- से जहा वा गङ्गा महानई जो पबूढा, जहिं वा पज्जु. वस्थिया एस णं अद्धे पंचनोयणसयाई आयामेणं अद्धजोयणं विक्खभेणं पंचधणुसयाई उव्वेहेण' वत्-अथ, यथा वा-गङ्गानाम महानदी यतः प्रवृत्ता-निर्गता भवति, यत्र वा गला पर्युपस्थिता-उपरता समाप्ता भवतीत्यर्थः, एष खलु अध्वागङ्गायाः मार्गः पश्चयोजनशतानि, आयामेन-दैर्येण, अथ च अर्द्धयोजनम् विष्कम्मेण-विस्तारेण, अथ च पश्च धनुशतानि उद्वेधेन गाम्भीर्येण वर्तते, 'एएणं गंगापमाणेणं सतगंगाओ सा एगा महागंगा, सत्तमहागंगाओ सा एगा सादीण संति वा' इसके बाद सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिचाणता को प्राप्त करते हैं। उन जीवों ने ही समस्त दुःखों का अन्त किया है, अब भी करते हैं और आगे भी वे करेंगे। महाकल्प का प्रमाण कितना होता है-अब वह इस बात को प्रकट करने के लिये कहता है-'से जहावा गंगा महानई जओ पबूढा जहिं वा पज्जुवस्थिया, एस णं अद्धे पंच जोयणसयाई आयामेणं अद्धजोयणं विक्खंभेणं पंच. धणुसयाई उन्वेहेणं' जैसे गंगामहानदी जहां से निकली है, और जहां जाकर समाप्त होती है, ऐसा यह गंगा का मार्ग पांच सौ योजन लम्बा है और आधा योजन चौड़ा है। तथा पांचसौ धनुषगंभीरतावाला है। 'एए णं गंगापमाणेणं सत्तगंगाओ सा एगा महागंगा, सत्त महागंगाओ सा एगा सादीणगंगा' और उसके मार्ग के प्रमाण से सात गंगाओं सव्वदुक्खाणमंतं करेंसु वा, करे ति वा, करिस्संति वा" त्या२ मा सिद्ध થાય છે, બુદ્ધ થાય છે, મુક્ત, થાય છે, પરિનિર્વાણુતાને પ્રાપ્ત કરે છે. એ છએ જ સમસ્ત દુઓને અન્ત કર્યો છે, વર્તમાનમાં પણ કરે છે અને ભવિષ્યમાં પણ અન્ત કરશે મહાકપનું પ્રમાણ કેટલું હોય છે, તે પ્રકટ કરવા निमित्त व भभलिपुत्र na मा प्रमाणे -" से जहा वा गंगा महानई जओ पवूढा जहिंवा पज्जुबत्थिया, एस णं अद्धे पंच जोयणसयाई अद्धजोयणं विक्खंभेणं पंचधणुसयाई उव्वेहेणं" ॥ नही यiथी नी छ, ત્યાંથી શરૂ કરીને તે સમુદ્રને જ્યાં મળે છે ત્યાં સુધીનું અંતર ૫૦૦ જનનું છે. એટલે કે ગંગાને પ્રવાહ ૫૦૦ જનની લંબાઈવાળા માર્ગ પરથી વહે છે, તેના પેટની પહોળાઈ અર્ધા એજનની છે, અને ઊંડાઈ ५०० धनुषप्रमाण छ. " एए णं गंगापमाणेणं सत्तगंगाओ सा एगा महागंगा, सत्त महागंगाओ सा एगा सादीणगंगा” मा समान भाग ४२i सात શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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