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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० १२ गोशालक वृत्तान्तनिरूपणम् ६१७ गंगा' एतेन - उपर्युक्तेन गङ्गाप्रमाणेन गङ्गायास्तन्मार्गस्य चाभेदाद गङ्गाप्रमाणेनेत्युक्तम्, सप्तगङ्गा मिलित्वा सा एका सादीनगङ्गा भवति, 'सतसादीणगंगाओ साएगा मच्चगंगा' सप्तसादीनगङ्गा मिलित्वा सा एका मर्त्यगङ्गा भवति, 'सत्तमच्चुगंगाओ सा एगा लोहियगंगा, सत्तलोहियगंगाओ सा एगा आवतीगंगा' सप्तमृत्युगङ्गा मिलित्वा सा एका लोहितगंगा भवति, सलोहितगङ्गा मिलित्वा सा एका आवन्ती गङ्गा भवति, 'सत्त आवती गंगाओ सा एका परमावती' सप्त आवन्तीगङ्गा मिलित्वा सा एका परमावन्ती भवति, 'एवामेव सपुब्बावरेणं एवं गंगासय सहस्से सत्तरसहस्सा छच्चए गुणपन्नगंगासया भवतिति मक्खाया' एवमेवकी एक महागंगा होती है, यहां गंगा और उसके मार्ग में अभेद मानकर केवल गंगा के प्रमाण से ऐसा कहा गया है । सात महागंगाओं की एक सादीन गंगा होती है अर्थात् गंगामहानदी के मार्ग का प्रमाण कहा गया है-ऐसे महागंगाओं की एक सादीन गंगा होती है अर्थात् गंगा महानदी के मार्ग का प्रमाण कहा गया है-ऐसे महागंगानदी के सात मार्ग मिलकर उनसे एक सादीन गङ्गा होती है । 'सत्त सादीणर्गगाओ सा एगा मच्चगंगा' सात सादीन गंगा मिलकर उनसे एक मर्त्यगंगा होती है । 'सत्त मच्चगंगाओ एगा लोहियगंगा, सत्तलोहियगंगाओ सा एगा आवती गंगा' सात मर्त्यगंगा मिलकर उनसे एक लोहित गंगा होती है, सात लोहीत गंगा मिलकर उनसे एक आवन्ती गंगा होती है। सात आवन्ती गंगा मिलकर उनसे एक परमावती गंगा होती है। ' एवामेव सपुण्यावरेणं एवं गंगासय सहस्सं सत्तर सहस्सा छच्चगुणपन्नगंगासया भवतीति मक्खाया' ગણાં પ્રમાણવાળી એક મહાગગા નદી હાય છે. સાત મહાગ ગા મળીને એક સાદ્દીનગગા થાય છે. (અહી' ગ′ઞા અને તેના માર્ગમાં અભેદ માનીને માગ પ્રમાણને બદલે ગંગાપ્રમાણ શબ્દના પ્રયાગ થયા છે.) એટલે કે મહાગંગા નદીના સાત માગ જેટલ્લી સાદીન ગંગાના માર્ગની લંબાઈ સમજવી. 66 सत्त सादीनगंगाओ सा एगा मच्चगंगा " सात साहीनगंगा भजीने मे भत्या भने छे, " सत्तमच्चगंगाओ एगा लोहियगंगा, सत्त लोहियगंगाओ सा एगा आवतीगंगा " सात मत्यगंगा भजीने थे। बोडितगंगा भने छे. સાત લેાહિતગ`ગા મળીને એક આવન્તીગંગા અને છે, અને સાત આવન્તી जौंजा भजीने भे! परभावती गंगा भने छे. “ एवामेव सपुव्वावरेणं एगं गंगासय सहस्सं सत्तर सहस्सा छच्च गुणपन्नगंगासया भवंति मक्खाया આ भ० ७८ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧ ܕܕ
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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