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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ १० १२ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ६०५ तओहिंतो अणंतरं उत्वट्टित्ता मज्झिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववजइ, से णं तत्थ दिव्वाइं भोग जाव चइत्ता पंचमे संन्निगन्भे जीवे पच्चायाइ,से णं तओहितो अणंतरं उव्वहिता हिटिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उवव्वजइ, से णं तत्थ दिव्वाई भोग जाव चइत्ता छठे संन्निगन्मे जाव पच्चायाइ, से णं तओहिंतो अणंतरं उव्वाहित्ता बंभलोगे नाम से कप्पे पन्नत्ते पाईणपडीणायए, उदाणदाहिणविस्थिन्ने जहा ठाणपदे जाव पंचवडेंसगा पण्णत्ता, तं जहा-असोगवडेंसगे जीवे पडिरूवा, से णं तत्थ देवे उववजइ, से णं तत्थ दस सागरोवमाइं दिवाई भोग जाव चइत्ता सत्तमे सन्निगब्भे जाव पच्चायाइ, से गं तत्थ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धहमाण जीवे वीइकंताणं सुकुमालगभद्दलए मिउकुंडलकुंचियकेसए मट्टगंडतलकन्नपीठए देवकुमारसप्पभए दारए पयायाइ, सेणं अहं कासवा! ते णं अहं आउसो ! कास वा! कोमारियपवजाए कोमारएणं बंभचेरवासेणं अविद्धकन्नए चेव संखाणं पडिलभामि, पडिलभित्ता इमे सत्त पउट्रपरिहारे परिहरामि, तं जहाएणेजगस्स१, मल्लरामस्स२, मंडियस्स३, रोहस्स४, भारहाइस्स५, अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स६, गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स७, तत्थ णं जे से पढमे पउट्ठपरिहारे से णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया मंडियकुच्छिसि चेइयंसि उदाइस्स कुंडियायणस्स सरीरं विप्पजहामि, विप्पजहिता एणेजगस्त सरीरगं શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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