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________________ ५८८ भगवतीसूत्र शीघ्रं त्वरितं यथा स्यात्तथा श्रावस्ती नगरीमाश्रित्य मध्यमध्येन-श्रावस्त्या नगर्या मध्यभागेनेत्यर्थः निर्गच्छति, 'निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छई' निर्गत्य-निष्कम्य, यत्रैव कोष्ठकं नाम चैत्यम् आसीत् , यत्रैव श्रमणो भगान् महावीरवासीत् , तत्रैव उपागच्छति, 'उवा. गच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ' उपागत्य, श्रमणं भगवन्तं महावीरम् त्रिकृत्वा-त्रिवारम् , आदक्षिणपदक्षिणं करोति, 'करेत्ता, वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी'- कृत्वा वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्थित्वा, एवं वक्ष्यमाणपकारेण अबादीत्-'एवं खलु अहं भंते ! छ? क्खमणपारणगंसि तुम्भेहि अब्भणुनाए समाणे सावत्थीए नयरीए उच्चनीय जाव कुंभकारापण से चले आये । 'पडिनिक्खमित्ता सिग्ध, तुरियं सावस्थि, नयरि मज्झं मज्झेणं निग्गच्छ' और आकर वे शीघ्र, त्वरित गति से श्रावस्ती नगरी के बीचों बीच से होकर निकले 'निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्टए चेहए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ' निकल कर वे कोष्ठक चैत्य में आये और उसमें भी जहां श्रमण भगवान् महावीर थे वहां गये 'उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ' वहां पहुंच कर उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर की तीन प्रदक्षिणाएँ की 'करेत्ता वंदह नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी' तीन प्रदक्षिणा करने के बाद फिर उन्होंने प्रभु की वन्दना की, नमस्कार किया। वंदना नमस्कार करके फिर उन्होंने प्रभु से ऐसा कहा-' एवं खलु अहं भंते ! छट्टक्खमणपारणगंसि तुब्भेहिं अब्भुणुन्नाए समाणे सावत्थीए नयरीए दु।२५४थी यादी नlivan. “ पडि नेक्खमित्ता सिग्धं, तुरियं सावत्थि नयरिं मझ मज्झेणं निगगच्छइ" त्यांथी २१ाना २२ श्रावस्ती नशीनी १२ये २२ शीघ्र भने परत तिथी या सा-या. " निग्गच्छित्ता जेणेव कोदए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ” यासतi ચાલતાં તેઓ કેષ્ટક ઉદ્યાનમાં જ્યાં શ્રમણ ભગવાન મહાવીર વિરાજતા હતા, त्यां गया “उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिण करेइ," त्यो ५डया भये श्रमाय नपान मडावीरनी त्रास हलिए। उरी, "करेत्ता वंदइ, नमंखइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एव वयासी" अ पार પ્રદક્ષિણા કરીને તેમણે તેમને વંદણ કરી, નમસ્કાર કર્યા અને વંદણુનમ२४॥२ ४१२ मा प्रमाणे घु-"एवं खलु अहं भंते ! छटुक्खमणपारणगंसि तुडभेहि अब्भणुनाए समाणे सावस्थिए नयरीए उच्चनीय जाव अडमाणे हाला શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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