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________________ प्रमेयमन्द्रिका टोका श. १५ उ० १ सू०.४ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ५०९ शनम्-रजा-पवनोड्डायितो गगनमध्यवर्ती पाशुः, रेणवश्व-भूमिस्थितपांशवस्तेषां विनाशनं-तदुपशमकम् , दिव्यम् , सलिलोदकवर्षम्-सलिलाः शीतादि महानद्यस्तासां रसादिगुणसाधात् सदृशस्य उदकस्य वर्षम्-सलिलोदकवर्षम् , 'जे णं से तिलथंभए आसत्थे पच्चायाए, तत्थेव बद्धमूले, तस्थेव पइटिए' येन खलु दिव्यसलिलोदकवर्षणेन स तिलस्तम्भका, आस्वस्थ:-स्थिरोऽभूत् , प्रत्याजात:-प्रत्युत्पन्नः प्रत्यङ्कुरितः तत्रैव-तस्मिन्नेव स्थाने बद्धमूल:-बद्धं-दृढं मूलं यस्य स तथाविधोऽभूत् यत्रैव स पूर्व पतित आसीत् , तत्रैव तस्मिन्नेव स्थाने स तिलस्तम्भकः प्रतिष्ठितः स्थिरोऽभूत् 'तेय सत्ततिलपुप्फनीवा उदाइत्ता उद्दाइत्ता तस्से व तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगुलिया सत्ततिला पचायाया' ते च कारण उस वृष्टि से कीचड नहीं होने पाई, पानी की गिरती हुई उन नन्ही २बून्दों ने आकाश में उडते हुए धूलिकणों को और जमीन पर रहे हुए पांशुकणों को उपशमित कर दिया। इन छोटी २ बिन्दुओं के रूप में जो दिव्य उदक-जल वरसा वह शीतादि महानदियों के रसादि गुण की समानतावाला था। यही बात 'सलिला:' इस पद से यहां प्रकट की गई है। यहां 'सलिला' शब्द का अर्थ शीतादि महानदियां' ऐसा है । 'जे णं से तिलयंभए आसत्थे पच्चायाए' तत्थेव बद्धभूले तस्थेव पइट्ठिए' इस दिव्य सलिलोदक की वर्षा से वह तिलस्तम्भ स्थिर हो गया, और वहीं पर जहां वह पड़ा था उसकी जड जम गई। इससे वह प्रत्यङ्कुरित हो गया। 'ते य सत्ततिलपुष्फजीवा उद्दाइत्ता २ तस्सेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगुलियाए सत्त तिला पच्चायाया' તે કારણે તે વૃષ્ટિથી કીચડ ઉત્પન્ન થયેલ નહીં આકાશમાંથી નીચે પડતાં પાણીનાં તે નાનાં નાનાં ટીપાઓએ આકાશમાં ઊડતાં ધૂળનાં રજકણોને તથા જમીન પર રહેલાં માટીનાં કણાને ઉપશમિત કરી નાખ્યા આ નાનાં નાનાં ટીપાંઓ રૂપે જે દિવ્ય જલની વૃષ્ટિ થઈ, તે શીતાદિ મહાનદીઓના રસાદિ शुशानी समानतावाणु तु मे वात “सलिलाः" । ५६ ६२१ अट १२वामा भावी छे. मही " सलिला" शहना अथ शनि महानहीरो' छ. “जे णं से तिलथंभए आसत्थे पञ्चायाए तत्थेव बद्धमूले तत्थेव पइदिए " ॥ हि०य ससिवनी वर्षाथी ते तसनी । स्थि२ ५७ गयो, અને જે જગ્યાએ તે પડ હતા તે જગ્યાએ જ તેની જડ જામી ગઈ તે ४॥२२ ते मरित २७ गये. " ते य सत्ततिलपुप्फजीवा उद्दाइत्तार तस्सेव तिलथंभगरम एगाए तिलसंगुलियाए सत्त तिला पच्चायाया" मन २ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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