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________________ भगवतीसूने गोयमा ! गोसालं मखलिपुत्तं एवं क्यासी' हे गौतम ! ततः खलु अहं गोशालं मंखलिपुत्रम् , एवं-वक्ष्यमाणकारेण अवादिषम्-उक्तवान् ‘गोसाला ! एस गं तिलथंभए निष्फज्जिस्सइ, नो न निष्फज्जिस्सई' हे गोशाल ! एष खलु पुरो दृश्यमानस्तिलस्तम्भको निष्पत्स्यते, नो न निष्पत्स्यते अपि तु अवश्यं निष्पत्स्यते इति भावः, 'एए य सत्ततिलपुष्फजीवा उदाइत्ता उदाइत्ता' एते च सप्ततिलपुष्पजीवाः अपद्य अपद्र्य, 'एयस्स चेव तिळथंभगस्स एगाए तिलसंगुलियाए सत्ततिला पच्चायाइस्संति' एतस्य चैव विलस्तम्भकस्य एकस्यां तिल संगुलिकायां-तिळफलिकायां, सप्ततिला प्रत्यायास्यन्ति-पुनरुत्पत्स्यन्ते, 'तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं आइक्खमाणस्स एयमलु नो सद्दहइ, नो पत्तियइ नो रोएइ,' ततः खलु स गोशालो मकलिपुत्रो मम एवम्-उक्तप्रकारेण, आख्यायतः, एतमर्थम् उपयुक्तार्थम् नो श्रदधाति, नो प्रत्येति-नो विश्वसिति, गोसालं मखलिपुत्तं एवं वयासी' इसके उत्तर में हे गौतम ! मैंने मंखविपुत्र गोशालक से ऐसा कहा-'गोसाला! एस णं तिलथंभए निष्फन्जिस्सइ, नोन निष्फज्जिस्सई' हे गोशालक! यह तिलका झाड अवश्य निपशेगा, नहीं निपजेगा ऐसा नहीं हैं । तथा 'एए य सत्ततिलपुप्फ जीवा उदाइत्ता उदाइत्ता' ये जो तिल पुष्प के सात जीव हैं,वे मर करके 'एयरस चेव तिल भगस्स एगाए तिलसंगुलियाए सत्ततिला पच्चायाइस्संति' इसी तिल के झाड की एक फली में सात तिलरूप से उत्पन्न होंगे। 'तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं आइक्खमाणस्स एयमढे नो सदहइ' इस प्रकार से उसके प्रश्न का उत्तर देनेवाले मेरे बचनों पर उस मंखलिपुत्र गोशालक को विश्वास नहीं हुआ। उसने मेरे कथन को अपनी प्रतीति का विषय नहीं बनाया उस पर उसे श्रद्धा नहीं वयासी" . गौतम! त्यारे में भमलिपुत्र nasi ॥ प्रमाणे उत्तर माध्या-" गोसाला ! एस णं तिलथंभए निप्पज्जिस्सइ, नो न निफज्जिस्सइ" . ગોશાલ ! આ તલને છોડ અવશ્ય નિપજશે. તે નહી નિપજે, એવી વાત सय नयी तथा " एएय सत्त तिलपुष्फजीवा उदाइत्ता उदाइत्ता" २ . dal ०५ना सात लव छ त भरीने " एयस्स चेव तिलथंभगस्स पगाए तिलसंगुलियाए सत्ततिला पच्चायाइस्संति" मा तलना छ।उनी मे सीमा सातत ३२ उत्पन्न थरी. "तए णं से गोसाले मखलिपुत्त मम एवं आइक्खमाणस्स एयम? नो सद्दहइ "तना ते प्रश्न उत्तर २मा प्ररने हेना। મારાં વચનેમાં તે સંખલિપુત્ર ગોશાલકને વિશ્વાસ આ નહી તેને મારા કથન પ્રમાણેની વાતની પ્રતીતિ ન થઈ તેને મારાં વચનામાં શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન થઈ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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