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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१५ उ०१ सू० ४ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ५०५ पुष्पितः-पुष्पयुक्तः, हरितकराराज्यमानः-हरितकेन-हरितवर्णेन अतिशयेन राजते इति तथाविधः, श्रिया शोभया अतीव अतीव उपशोभमानः उपशोभमानस्तिष्ठति, 'तए णं गोसाले मंखलिपुत्ते तं तिलथंभगं पासइ' ततः खलु गोशालो मखलिपुत्रस्तं तिलस्तम्भकं पश्यति, 'पासित्ता ममं वंदर, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वयासी'-तं तिलस्तम्भकं दृष्ट्वा मां वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्यित्वा, एवम्-वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादी-एस णं भंते ! तिलथंभए किं निष्फज्जिस्सइ, नो निफ्फन्जिस्सइ ?' हे भदन्त ! एष खल पुरो दृश्यमानः, तिलस्तम्भक किं निष्पत्स्यते नो वा निष्पत्स्यते ? 'एए य सत्ततिलपुफ्फजीवा उदाइत्ता उदाइत्ता कहिं गच्छिहिति, कहिं उपवन्जिहिति ?' एते च सप्ततिलपुष्पजीवाः अपद्रूय अपद्रूय कुत्र गमिष्यति, कुत्र उत्पत्स्यते ? भगवानाह-'तएणं अहं झाड था जो पत्रों से युक्त एवं पुष्पों से सुशोभित था। यह अपनी हरियाली से बड़ा सुन्दर दिखता था इसी कारण यह अपनी शोभा से बना हुआ था। 'तए णं गोसाले मंखलिपुत्ते तं तिलथंभगं पासइ' गोशालक मंखलिपुत्र ने इस तिल के झाड को देखा । 'पासित्ता ममं वंदा, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी' देखकर उसने मुझे वंदना की, नमस्कार किया वन्दनो नमस्कार करके फिर उसने मुज्ञ से इस प्रकार कहा-'एस णं भंते ! तिलथं भए किं निप्फजिस्सइ, नो निफज्जिस्सई' हे भदन्त ! यह तिल का झाड निपजेगा ? या नहीं निपजेगा ? 'एए य सत्ततिलपुप्फजीवा उदाइत्ता उदाइत्ता कहिं गच्छिहिति, कहिं उववन्जिहिति' तथा ये जो तिलपुष्प के सात जीव हैं वे मर कर कहां जावेगे? कहां उत्पन्न होवेंगे? 'तए णं अहं गोयमा ! એક માટે તલને છોડ હતું, જે પાનથી યુક્ત હતા અને પુષ્પથી સુશેભિત હતે. તે પોતાની હરિયાળીને લીધે ઘણો જ સુંદર લાગતું હતું, તે ४२२ त पातानी मा १७ सुशामित nा डतो. "तए णं गोसाले मखलिपुत्ते तं तिलथंभगं पासइ" म मलिपुत्र ते सन छ। नया. "पासित्ता मम वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नम सित्ता एवं वयासी" त्यार બાદ તેણે મને વંદણા કરી અને નમસ્કાર કર્યા. વંદણાનમસ્કાર કરીને તેણે भने म प्रभारी प्रश्न पूछये।-" एस ण भंते ! तिलथंभए कि निष्फज्जिस्सइ, नो निष्फज्जिस्सइ ?" उमराव ! सा तसना छ। नि , हैन नि ? " एएय सत्त तिलपुप्फजीवा उदाइत्ता उदाइत्ता कहिं गच्छिहिति, कहिं उववजिहिंति ?" तथा २ मा तसना युयना सात छे, तसा मरीन यां नशे ? ४५i अपन्न थरी १ “तएण अहं गोयमा ! गोसालं मखलिपुत्तं एवं भ० ६४ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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