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________________ भगवतीसूत्र महावीरेण एवमुक्तमकारेण उक्तः सन् हृष्ट तुष्टः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्पति, वन्दित्वा, नमस्यित्वा, तमेव आभिषेक्यम्-अभिषेकयोग्य पट्टहस्तिनम् आरोहति, 'दुरुहिता समणरस भगवओ महावीरस्स अंतियाओ मियवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव वीतभए नयरे तेणेव पहारेत्य गमणाए' आभिषेक्थं पहस्तिनम् आरुय श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिकातू-समीपात् मृगवनात् उद्यानात् प्रतिनिष्क्रामति-निर्गच्छति, प्रतिनिष्क्रम्प-निर्गत्य यत्रैव वीतिभयं नगरमासीत् तत्रैव पाधारयत्-मस्थितवान् गमनाय-गन्तुम् , 'तएणं तस्स उदायणस्त रणो अपमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था' ततः खलु तस्य उदायनस्य राज्ञः अयमेतद्रूपः-वक्ष्यमाणस्वरूप: आध्यात्मिकः आत्मगतः यावत्-चिन्तितः, कल्पितः प्रार्थितः, मनोगतः संकल्पः समुदपघत-समुत्पन्नः एवं खलु अभीइकुमारे मर्म एगे पुत्ते इट्टे कंते जार किमंगपुणपासणयाए ?' एवं खलु अभीतिकुमारो मम कहे गये उदायन राजा बहुत खुश हुए इस प्रकार होकर उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की और नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार कर फिर वे अपने पट्टहाथी पर आकर सवार हो गये 'दूरुहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अतियाओ मियवणाओ उज्जाणामो पडिनिक्ख. मइ' सवार होकर वे भगवान् महावीर के पास से और मृगवन उद्यान से चल दिये 'पडिनिक्खमित्तो जेणेव वीतिभए नयरे तेणेव पहारस्थ गमणाए' और वीनिभय नगर की ओर बढने लगे। 'तए णं तस्स उदायणस्स रणो अयमेयारवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था' इतने में उदायन राजा के मन में ऐसा चिन्तित, कल्पित, प्रार्थित विचार उत्पन्न हुआ कि एवं खलु अभीइकुमारे ममं एगे पुत्ते इटे कंते जाव किमंग पुण पासणयाए' मेरे एक ही अभीजित्कुमार पुत्र है । यह मुझे बहुत આ પ્રમાણે કહ્યું ત્યારે ઉદાયન રાજા ઘણે જ ખુશ થયો તથા સંતુષ્ટ થયે તેણે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદણુ કરી અને નમસ્કાર કયા વંદણુનમસ્કાર કરીને તે ત્યાંથી નીકળીને પિતાના પટ્ટા હાથી પર સવાર થઈ ગયે. "दुरुहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ मियवणाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमइ” हाथी ५२ सवार तसवान महावीरनी पासेथी अन भृगवन धानमाथी २वाना थयो, “पडिनिक्खमित्ता, जेणेव वीतिभए नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए" मन वात भय नगरनी त२३ भागण धवा माश्या. “तएणं तस्स उदायणस्स रण्णो अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुष्पज्जित्था " २स्वाभाय न मनमा । आध्यात्मि, यितित, पित, प्रार्थित, विया२ सय है-" एवं खलु अभीइकुमारे ममं एगे पत्ते इटे कंते जाव किमंग पुण पासणयाए" म तभार भारत मेना मे શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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