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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ०६ सू० ३ उदायनराजचरितनिरूपणम् ३७ तत् वर्तते, यावत् तत्-तथैव खलु वर्तते यथा एतत् यूयं वदथ-कथयथ इति कृत्या-भगवतो वाक्यं समर्थ्य 'जं नवरं देवाणुपिया ! अभीयिकुमारं रज्जे ठावेमि, तएणं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्ययामि' हे देवानुप्रियाः ! नवरम् एतावान विशेषो वर्तते यत्-अभीतिकुमार पुत्र राज्ये स्थापयामि तावत प्रथमम् , ततः खलु-तदन्तरं किल, अहं देवानुप्रियाणां भवतामन्तिके समीपे मुण्डो भूतला यावत्-मनमामि-दीक्षां गृह्णामि, भगवानाह-'अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध करेइ' भो देवानुप्रिय! यथा सुखं यथेष्टं कुरु, स्वेच्छानुसारं कर्तुमर्हसि मामतिबन्धं कुरु । 'तएणं से उदायणे राया समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ट तुड़े समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता, तमेष आमिसेवक हत्थि दूरूहइ' ततः खलु स उदायनो राजा श्रमणेन भगवता कट्ठ' हे भदन्त ! यह ऐसा ही है, यह वेसा ही है जैसा कि आप कहते हैं। इस प्रकार भगवान् के वचनों का समर्थन कर फिर उन्होंने ऐसा कहा-'नवरं देवाणुप्पिया ! अभीयिकुमारे रज्जे ठावेमि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्ययामि' हे देवानुप्रिय ! मैं अभीतिकुमार को राज्य में स्थापित करना चाहता हूँ, सो उसे राज्य में स्थापित कर आप देवानुपिय के पास फिर मुंड़ित होकर दीक्षा धारण करूँगा। 'अहासुदं देवाणुपिया ! मा पड़िबंध करेइ' इस प्रकार से उदायन राजा की बात सुनकर प्रभु ने उनसे ऐसा कहा-हे देवानुप्रिय ! तुम्हें जैसा सुख हो वैसा करो-पर विलम्ब मत करो। 'तए ण से उदायणे राया समणेणं भगवया महावीरेणं एवं बुत्ते समाणे हतुढे समणं भगवं महावीरं वंदह नमंसद, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव आभिसेक हत्थिं दुरूहइ' इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर से तुन्भे बदहत्तिक? " 3 मावन् ! माघे सयुं छे, ते मे प्रमाणे छे. આપની વાત સર્વથા સત્ય છે. આ પ્રમાણે ભગવાનના વચનનું समन श२ तेमाणे या प्रमाणे यु:-" नवरं देवाणुप्पिया! अभीयिकुमारे रज्जे ठावेमि, तएणं अहं देवाणुप्पियाण अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्व. यामि" D सगरन् !हु मलातिमारने राज्यपाही साडीन-तने। રાજ્યાભિષેક કરાવીને-આપ દેવાનુપ્રિયની પાસે મુંડિત થઈને દીક્ષા ધારણ जरीश त्यारे महावीर प्रमुख तर यु-अहा सुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेड" वानुप्रिय! तमन २वी रीत सुम ५२ सभा २, ५९ मापा शुभ या विan या ने नही. “तएणं से उदायणे राया समणेणं भगवया महावीरेणं एवं बुत्ते समाणे हद्वतुढे समण भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव आभिसेकं हत्थि दुरुहइ" यारे महावीर प्रमुख શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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