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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० ३ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ४८१ 6 " " पयाई अणुगच्छइ ' अञ्जलिमुकुलित हस्तः - अञ्जलिना मुकुलितौ मुकुलाकारौ कृतौ येन स तथाविधः सन् मम सप्ताष्टपदानि अनुगच्छति - मम संमुखे समागच्छति, 'अणुगच्छित्ता ममं तिक्खुत्तो आयाणिपयाहिणं करेइ ' अनुगस्य मम त्रिः कृत्वः त्रिवारम्, आदक्षिणप्रदक्षिणं करोति, करेता ममं चंद, नर्मसह कृत्वा मां वन्दते नमस्यति, ' वंदित्ता नमसित्ता ममं विउलेणं असणपाणखाइमसाइ मेणं पडिला भेस्सामित्ति कहु तुड़े, पडिला मेमाणे बि तुट्ठे पडिलाभिए वि तुट्ठे ' वन्दित्वा नमस्थित्वा माम् विपुलेन अशनपानखादिमस्वादिमेन प्रतिलाभयिष्यामि इति कृत्वा - विचार्य तुः संजातः, अथ च प्रतिलाभयन्नपि तुष्टोऽभूत् एवं प्रतिलाभितवानपि तुष्टः कालत्रयेऽपि मम प्रतिलाभ संभावनाजन्यानन्द वरिपूर्णः लिये एक शाटकयुक्त उत्तरासङ्ग किया अंजलिमउलियहस्थे ममं ससपयाई अणुगच्छई' अंजलि से मुकुलाकार किये हैं हाथों को जिसने ऐसा होकर वह फिर सात आठ पग तक मेरे सन्मुख आया । 'अणुगच्छित्ता ममं तिक्खुतो आयाहिणपयाहिणं करेइ' मेरे सम्मुख आकर तीन बार उसने मेरी प्रदक्षिणा की। 'करेत्ता ममं वंदइ, नम॑सई' पदक्षिणा देकर उसने मेरे लिये बन्दना की, नमस्कार किया, 'वंदित्ता नमंसित्ता ममं विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिला मेस्सामित्ति कट्टु तु पडिला मेमाणे वि तुट्ठे पड़िलाभिए वि तुट्टे' वंदना नमस्कार कर फिर उसने विचार किया मैं इन्हें विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम चारों प्रकार के आहार से प्रतिलाभित करूँगा- इस विचार से वह बहुत तुष्ट हुआ, तथा जब उसने मुझे प्रतिलाभित कराते समय भी (सांधावगरना थडाथी) यु “अंजलिमउलियहत्थे मम सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ અ'જલીથી હાથાને મુકુલાકાર કરીને, તે સાત ડગલાં આગ્યેા. 'अणुगच्छित्ता ममं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिण करेइ " भारी साभे भावीने तेथे त्रष्णु बार भारी प्रदक्षिणा उरी. " करेत्ता मम वंदह, नमसइ त्यार माह तेथे भने वानभसार अर्था. " वंदित्ता, नमसित्ता मम वि लेण' अणपाणखाइमसाइमेण पडिलाभेस्सामित्ति क तुट्ठे पडिलाभेमाणे वि तुट्टे, पडिलाभिए वि तुट्टे " वहा नमस्सार उरीने ते मेवे विचार य કે હું આ અણુગારને વિપુલ અશન, પાન, ખાદ્ય અને સ્વાદ્ય રૂપ ચારે પ્રકારના આહાર વહેરાવીશ આ પ્રકારને વિચાર આવતાં જ તે ઘણા તુષ્ટ (संतुष्ट, खुशी) थये!, न्यारे तेथे भने यारे अारना सारथी प्रतिसा ભિત કર્યાં, ત્યારે પણ તે સ ંતુષ્ટ થયે અને મને પ્રતિલાભિત કર્યા બાદ भ० ६१ 66 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧ "" "
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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