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________________ ४८० भगवतीसूत्रे , , रायगिहे नगरे उच्चनीय जाव अडमाणे विजयस्स गाहावइस्स गिद्द अणुष्पविद्वे ' उपागत्य, राजगृहे नगरे उच्चनीच यावत् मध्यमानि कुलानि गृहसमुदायस्य भिक्षाचर्यया अटन्, विजयस्य गाथापते गृहमनुप्रविष्टोऽहम्। 'तर णं से विजय गाहावई ममं एमाणं पास' ततः खलु स विजयो गाथापतिः माम् आयन्तम् आगच्छन्तं पश्यति 'पासित्ता हट्टनुट्ट० खियामेव आसणाओ अन्भुडे ' ear eष्टः सन् क्षिप्रमेत्र आसनात् अभ्युत्तिष्ठते - अभ्युत्थितः 'अन्मुट्ठिता पायपीढाओ पच्चोरुrs' अभ्युत्थाय पादपीठात् मत्यवरोहति - अवतरति 'पच्चो रुहेत्ता पाउयाओ ओय' प्रत्यवरुह्य पादुके अवमुञ्चति परित्यजति, ओमोइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करे ' पादुके अमुच्य एकशाटिकम् - एकशाटकयुक्तम् अस्यूतम् उत्तरासङ्गम् भाषा यतनार्थम् करोति, 'अंजलि मउलियहत्थे ममं सत्तट्ट'उवागच्छिता रायगिहे नयरे उच्च, नीय जाव अड़माणे विजयरस गाहाबदस्त हिं अणुप्पनिट्टे' वहां आकर मैं राजगृह नगर में उच्च, नीच, यावत् मध्यमकुलों के घर समूह की भिक्षाचर्या के निमित्त भ्रमण करता हुआ विजय गाथापति के घर में प्रविष्ट हुआ 'तए णं से विजय गाहावई ममं एजमाणं पासई' तब उस विजय गाथापति ने आते हुए मुझे देखा 'पासित्ता हतुट्ठ • खिप्पामेव आसणाओ अन्भुहेइ' देखकर वह बहुत अधिक हर्बित एवं संपुष्टचित्त हुआ और शीघ्र दी अपने आसन से उठा 'अमुट्ठित्ता पायपीदाओ पच्बोरुह उठकर वह सिंहासन से नीचे उतरा 'पच्चीरुहित्ता पाउयाओ ओमुयाइ' नीचे उतर कर उसने पादुकाओं को छोड दिया, 'ओमोइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ' पादुकाओं को उतार कर फिर उसने भाषा की यतना के - " उवागच्छित्ता रायगिद्दे नयरे उच्च, नीय जाव अडमाणे विजयस्स गाहावइरस गिe अणुपविट्टे" त्यां भावीने, हुं रामगृह नगरना उस्य, नीच मने મધ્યમ કુળાના ઘરસમૂહમાં ભિક્ષાચર્યું નિમિત્ત ભ્રમણ કરતા કરતા વિજય ગાથાપતિના ઘરમાં પ્રવેÕા, " तरणं से विजए गाहावई ममं पजमाण पाखइ " त्यारे ते विनय गाथापतिमे भने भावतो लेयो "पासिता - तु खिप्पामेव आसणाओ अन्भुट्ठेइ " भने लेधने तेने हर्ष ने સતાષ થયા, અને તુરત જ તે પાતાના આાસન પરથી ઊભેા થયા. अब्भुट्टित्ता पायपीढाओ पश्चोरुहs " मने जिला थाने ते सिंहासन परथी नीचे उत. " पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ " त्यार माह पाहुन्याने सादी नाणी, << ओमोइत्ता गाडिय उत्तरासंग करेइ " याहुमसोने કાઢી નાખીને ભાષાની પતનાને માટે તેણે એક શાટકથી ઉત્તરાસંગ (6 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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