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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१५ उ० १ २० २ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ४६३ सन् मखत्वेन मंखजातीयः भिक्षाचरत्वेन आत्मानं भावयन् पूर्वानुपूर्वीम्-अनु. क्रमेण चरन् , ग्रामानुग्रामम्-ग्रामाद् ग्रामान्तरम् , द्रवन्-पर्यटन् , 'जेणेव सरवणे सन्निवेसे, जेणेव गोबहुलस्स माहणस्स गोसाला, तेणेव उवागच्छ।' यत्रैव शरवणं सन्निवेश आसीत् ,यत्रैव-गोबहुळस्य ब्राह्मस्य गोशाला आसीत् , तत्रैव उपागच्छति, 'उवागच्छित्ता गोबहुलस्स महाणस्स गोसालाए एगदेसंसि भंडनिक्खेवं करेइ' उपागत्य गोबहुलस्य ब्राह्मणस्य गोशालाया एकदेशे भाण्ड निक्षेपं करोति-निजोपकरणं स्थापयति, 'भंडनिक्खेवं करेत्ता सरवणे सनिवेसे उच्चनीचज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे वसहीए सबओ समंता मग्गणगवेसण करेइ' भाण्डनिक्षेपं कृत्वा उपकरणं संस्थाप्य, शरवणे-सन्निवेशे उच्चनीचमध्यमानि कुलानि गृहसमुदायस्य मध्ये भिक्षाचर्यया अटन-पर्यटन वसतए-आवासार्थम् , सर्वतः, समन्तात् मार्गणगवेषणम्-अन्वेषणसाथ लेकर वहां से चल दिया और क्रमशः चलते २ तथा एक ग्राम से दूसरे गांव को पार करते२ वह 'जेणेव सरवणे संनिवेसे जेणेव गोबहुलस्स माहणस्स गोसाला तेणेव उवागच्छई' जहां शरवण ग्राम था वहां आया, वहां आकर वह गोयहुल ब्राह्मण की गोशाला में आया 'उवागच्छित्ता गोबहुलस्स माहणस्स गोसालाए एगदेसंसि भंडनिक्खेवं करेइ' वहां जाकर वह गोहुल ब्राह्मण की उस गोशाला में एक तरफ ठहर गया और वहीं पर उससे अपना सामान रख दिया। 'भंडनिश्खेवं करेत्ता सरवणे संनिवेसे उच्चनीचमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियरियाए अडमाणे वसहीए सव्वभो समंता मग्गणगवेसणं करेई' सामान रखकर वह शरवण संनिवेश में उच्चनीच एवं मध्यमजनों के घरों में भिक्षाचर्या करता हुआ वसति के लिये सब तरफ शोध खोज मे सामथी भी२ गाम यासत याadi “जेणेव सरवणे संनिवेसे, जेणेव बहुलस्स माहणस्स गोसाला वेणेव उवागच्छद" च्या । सनिवेश तु ત્યાં આવી પહોંચ્યા ત્યાં આવીને તેઓ બહુલ બ્રાહ્મણની ગોશાળામાં मस यया. “उवागच्छित्ता गोबहुलस्स माहणस्स गोसालाए एगदेसंसि भंडनिक्खेवं करेइ" मा होस न तो पताना सामान गोशाजान से मामा की टीपी. “ भंडनिक्खेव करेत्ता सरवणे संनिवेसे उच्चनीच्चमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे वसहीए सवओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ" त्यां सामान भूटान त शरवार सनिवेशन। ઉચ્ચ, નીચ અને મધ્યમ જોના ઘરોમાં ભિક્ષાચર્યા કરવા લાગ્યો અને २२।। याय स्थाननी (धरनी) 2 त२३ ३२वा वाय. “वसहीए શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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