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भगवती सूत्रे
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दीत् - ' किमिदं भंते । सूरिए, किमिदं भंते सूरियस्स अट्ठे ?' हे भदन्त ! कोयं पुरो दृश्यमानः सूर्यो वर्तते ? किं स्वरूपमिदं सूर्यवस्तु वर्तते, हे भदन्त । कोऽयं सूर्यशब्दस्य अर्थश्च वर्तते ? भगवानाह - 'गोयमा । सुभे सूरिए, सुभे सुरियस्स अड्डे' हे गौतम! शुभः सूर्यः शुभस्वरूपं सूर्यवस्तु वर्तते सूर्यविमानपृथिवीकायिकानामातपाभिधानपुण्यप्रकृत्युदयवर्तिस्वात्, लोके प्रशस्ततया मसिद्धस्वाथ, ज्योतिश्च चक्र केन्द्रत्वाच्च, एवं शुभः सूर्यशब्दार्थो वर्तते सुरेभ्यः क्षमातपोदानयुद्धादिवरेभ्यो हितः, सुरेषु वा साधुः सूर्यः 'तस्मै हितम् ' ' तत्र साधुः इत्यन्यतरसूत्रेण यत्प्रत्यये सूर्यशब्दस्य व्युत्पादितत्वात्, गौतमः पुनः पृच्छति'किमिदं भंते! सूरिए, किमिदं भंते ! सूरियस्स अहे' हे भदन्त ! यह आगे दिखलाई देता सूर्य क्या पदार्थ हैं और सूर्य इस शब्द का अर्थ क्या है ? इसके उत्तर में प्रभुने कहा- गोधमा ! सुभे सूरिए सुभे सूरियस्स अट्ठे' हे गौतम! आगे दिखलाई देता यह सूर्य एक शुभ स्वरूपवाला पदार्थ है क्यों कि सूर्य के विमान पृथिवीकायिक होते हैं और इन पृथिवी कायिकों के आतप नामकी पुण्यप्रकृति का उदय होता है तथा लोक में सूर्य प्रशस्त रूप से प्रसिद्ध है एवं यह सूर्य ज्योतिश्चक्र का केन्द्र है तथा सूर्यशब्द का अर्थ भी शुभ है "सुरेभ्यो" दितः सूर्यः इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो क्षमा, तप, दान, युद्ध आदि में शूरवीरों के लिये हितकारक होता है वह सूर्य है । अथवा शूरों में जो साधु हो वह सूर्य है "तस्म हितम्" "तत्र साधु" इनमें से किसी एक सूत्र से यत् प्रत्यय करने पर सूर्यशब्द बन जाता है।
प्रश्न पूछा - " किमिदं भंते! सूरिए, किमिदं भंते! सुरियस्स अट्टे " डे भग. વન્! આ સામે દેખાતા સૂર્ય કસૈા પદાર્થ છે? અને “ સૂર્ય ” આ શબ્દના શેા અથ થાય છે?
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भडावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा ! सुभे सूरिए, सुभे सूरियस्स अड्डे' હું ગૌતમ ! સામે દેખાતા સૂર્ય એક શુભ સ્વરૂપવાળા પદાર્થ છે, કારણ કે સૂર્યંનાં વિમાન પૃથ્વીકાયિક હાય છે અને આ પૃથ્વીકાયિકામાં આતપ નામની પુણ્યપ્રકૃતિના ઉદય હાય છે, તથા લેાકમાં સૂર્ય પ્રશાશ્ત રૂપે પ્રસિદ્ધ છે, તથા આ સૂર્ય જ્યાતિશ્ચક્રના કેન્દ્રરૂપ છે, સૂર્ય શબ્દના અર્થ પણ શુભ छे, " सूरेभ्यो हितः આ વ્યુત્પત્તિ અનુસાર જે ક્ષમા, તપ, દાન, યુદ્ધ આદિમાં શૂરવીરશને માટે હિતકારક હાય છે, તે સૂર્ય છે. અથવા શૂરામાં ने साधु होय ते सूर्य छे. " तस्मै हितम् " तत्र साधु આ બન્નેમાંથી अर्थ पशु सूत्र थी " यत् " प्रत्यय सभाडवोथी 'सूर्य' शब्द भने छे.
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧