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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० ९ सू० ३ सूर्यप्रभानिरूपणम् ४०७ बालसूरियं जासुमणाकुसुमपुंजप्पकास लोहितग पासइ' तस्मिन् काले, तस्मिन् समये भगवान् गौतमः अचिरोद्तं-सद्यः उदितम्-उदितमात्रमित्यर्थः, अतएवाहबालसूर्यम् जासुमनाकुसुमपुञ्जप्रकाशम्-जासुमना नामरक्तपुष्पपुञ्जसदृश-प्रकाशम् अतएव-लोहितकम्-अत्यन्तरक्तम् बालसूर्यमितिपूर्वेण सम्बन्धः, पश्यति 'पासित्ता जायसड़े जाव समुपनकोउहल्ले' दृष्ट्वा तादृशं बालसूर्य विलोक्य जात. श्रद्धः-समुत्पन्नश्रद्धावान् यावत् समुत्पन्नकुतूहल: 'जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, जाव नमंसित्ता जाव एवं वयासी' यत्रैव श्रमणो भगवान महावीरः आसीत् , तत्रैव उपागच्छति, यावत्-तत्रैव उपागत्य, वन्दते नमस्यति वन्दित्वा. नमस्यित्वा, यावत्-विनयेन पयुपासीनः, एवं-वक्ष्यमाणपकारेण अवा. गोयमे अचिरुग्गयं बालसूरियं जासुमणा कुसुमपुंजप्पकासं लोहितगं पासई' उसकाल और उस समय में भगवान गौतम ने जासुमणाकुसुम के पुंज जैसा लोहितसूर्य देखा-जिसे उदित हुए बहुत समय नहीं हुआ था अर्थात् उदित होते ही सूर्य लोहित (लाल) रहता है बाद में नहींतात्पर्य कहने का यही है कि वालसूर्य गौतम ने देखा-'पासित्ता जाय. सड़े जोव समुप्पन्नकोउहल्ले' देखते ही उन्हें बडा कुतूहल हुआ इस कुतूहल की निवृत्ति भगवान् से ही हो सकती है ऐसे उनके चित्त में श्रद्धा तो थी ही सो वे 'जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छ। जहां श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे-वहां पर गये वहां जाकर उन्होंने श्रमण भगवान् को वन्दना की नमस्कार किया वन्दनानमस्कार कर फिर वे बडे विनय के साथ प्रभु से इस प्रकार पूछने लगे समएण भगवं गोयमे अचिरुग्गयं बालसूरियं जासुमणाकुसुमपुंजप्पकासं लोहितं पास" त आणे म त समये, समपान गौतम सुमसुमना । જેવા લેહિત (આરકત) સૂર્યને દેખે. (જેને ઉદય થયાને વધારે સમય ન હોય એ સૂર્ય અથવા ઉગતા સૂર્ય લાલ હોય છે.) આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે ગૌતમ સ્વામીએ બાલસૂર્યને જે. ___“पासित्ता जायसड्ढे जाव समुप्पन्नकोउहल्ले" ale ना मायन જોતાં જ તેમને ખૂબ જ કુતૂહલ થયું. તેમને એવી શ્રદ્ધા હતી કે આ इतर निवारण महावीर प्रभु ४N शरी, तथा “जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ" तो न्यो श्रम लगवान महावीर विमान હતા, ત્યાં ગયા. ત્યાં જઈને તેમણે તેમને વંદણ કરી, નમસ્કાર કર્યા. વંદણાનમસ્કાર કરીને ખૂબ જ વિનયપૂર્વક તેમણે મહાવીર પ્રભુને આ પ્રમાણે શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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