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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० ९ सू० ४ श्रमणविशेषनिरूपणम् ४०९ 'किमिदं भंते ! मूरिए, किमिदं भंते ! सूरियस्स पभा ?' हे भदन्त ! कोऽयं सूर्यः ? किं स्वरूपमिदं सूर्यवस्तु वर्तते ? हे भदन्त ! केयं च सूर्यस्य प्रभा? कि स्वरूपा इयं सूर्यप्रभा वर्तते ? इति प्रश्नः । भगवानाह-'एवं चेव, एवं छाया, एवं लेस्सा' हे गौतम ! एवमेव-पूर्वोत्तरीत्यैव शुभः खलु सूर्यो वर्तते, शुभा च मूर्यस्य प्रभा वर्तते उक्तयुक्तेः, एवं-तथैव सूर्यस्य छायापि-कान्तिरपि शुभैव वर्तते, एवं-तथैव, सूर्यस्य लेश्याऽपि-तेजोलेश्याऽपि शुभैव वर्तते, इतिभावः ॥सू० ३॥ श्रमणविशेषवक्तव्यता। मूलम्-“जे इमे भंते! अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरति, एतेणं कस्स तेयलेस्सं वीइवयंति? गोयमा! मासपरियाए समणे निग्गंथे वाणमंतराणं देवाणं तेयलेस्सं वीइवयइ, दुमासपरियाए समणे निग्गंथे असुरिंदवज्जियाणं भवणवासीणं देवाणं तेय. लेस्सं वीइवयइ, एवं एएणं अभिलावेणं तिमासपरियाए समणे निग्गंथे असुरकुमाराणं देवाणं तेयलेस्सं वीइवयइ, चउम्मास परियाए सगहनक्खत्ततारारूवाणं जोइसियाणं देवाणं तेयलेस्सं वीइवयइ, पंचमासपरियाए य सचंदिमसूरियाणं जोइसिंदाणं अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं-'किमियं भंते ! सूरिए, किमिदं भंते ! सूरियस्स पभा' हे भदन्त ! यह सूर्यरूप वस्तु क्या है और सूर्य की प्रभा क्या है ? इस के उत्तरमें प्रभु कहते हैं-'एवं चेव, एवं छाया, एवं लेस्सा' हे गौतम ऊपर कहे अनुसार सूर्य यह एक शुभ पदार्थ है और सूर्य की प्रभा भी शुभरूप है इसी प्रकार सूर्य की कान्ति भी शुभ ही है और सूर्य की तेजोलेश्या भी शुभ ही है।०३॥ गौतम स्वामीना प्रश्न-"किमिदं भंते ! सूरिए, किमिदं भंते ! सूरियस्स पभा?" भगवन् ! मा सूर्य ३५ १३तु शुछ, भने सूर्यनी प्रमा छ । महावीर प्रसुन उत्तर-“ एवं चेव, छाया, एवं लेस्सा" गौतम । ઉપર કહ્યા પ્રમાણે સૂર્ય એક શુભ પદાર્થ છે. સૂર્યની પ્રભા પણ ભરૂ૫ છે. આ પ્રકારે સૂર્યની કાન્તિ પણ શુભ જ અને સૂર્યની તેજલેશ્યા પણ શુભ જ છે. સૂ૦૩ भ० ५२ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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