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________________ भगवतीसूत्रे पुष्पफलज़म्भकाः, विद्याजम्भकाः, अव्यक्तज़म्भकाः, जम्भकाः खलु भदन्त ! देवाः कुत्र वसतिम् उपयन्ति ? गौतम ! सर्वेषु चैत्र दीर्घ विजयार्द्धषु चित्रविचित्र यमकसमकपर्वतेषु काञ्चनपर्वतेषु च अत्र खलु जम्मकाः देवाः वसतिम् उपयन्ति, जृम्भकाणां भदन्त ! देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता? गौतम! एकं पल्यो. पमम् स्थितिः प्रज्ञप्ता, तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति यावत् विहरति ।मु०७॥ टीका--देवाधिरात् जृम्भव्यन्तरविशेषवक्तव्यतां प्ररूपयितुमाह-'अस्थि णं भंते' इत्यादि, अस्थि णं भंते ! जंभया देवा जंभया देवा ?' गौतमः पृच्छतिहे भदन्त ! अस्ति-संभवति खलु जम्भका देवाः जम्भकाः-जम्भन्ते विजृम्भन्तेस्वच्छन्दचारित्वेन ये चेष्टन्ते ते जृम्भकाः तिर्यग्लोकवासिनोव्यन्तरदेवाः किं भवन्ति ? भगवानाह-'हंता, अस्थि' हे गौतम ! हन्त-सत्यम् अस्ति संभवति व्यन्तरजम्भकवक्तव्यता'अस्थि णं भंते! जंभया देवा जंभया देवा' इत्यादि । टीकार्थ--देवों का अधिकार चल रहा है। इसलिये ज़ुभकविशेष वक्तव्यता की प्ररूपणा करने के लिये सूत्रकार ने इस सूत्र को कहा है'अस्थि णं भंते जंभया देवा, जंभया देवा' इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-भदन्त ! स्वच्छन्दचारी होने से जो विविध प्रकार की चेष्टाएँ किया करते हैं उनका नाम जंभकदेव हैं ये तिर्यग्लोक में रहते हैं और ये व्यन्तर जाति के देव हैं । इसी बात को गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-कि जुंभक देव यह पद स्वच्छन्दचरण शील होने के कारण तिर्यग्लोक वासीदेव जंभक देवों का वाचक है क्या ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता, -०यन्त२ ga sd०यता“ अस्थि ण भंते जंभया देवा जंभया देवा" ४त्याह ટકાથુ–દેવને અધિકાર ચાલી રહ્યો છે. તેથી હવે સૂત્રકાર વ્યક્તર જાતિના જંભક દેવવિશેષની વકતવ્યતાની પ્રરૂપણ કરે છે. જંભક સ્વચ્છેદચારી હોય છે. તેઓ વિવિધ પ્રકારની ચેષ્ટાઓ કર્યા કરે છે. તેઓ તિય કમાં રહે છે. તેઓ વ્યન્તર જાતિના દેવ છે. ગૌતમ સ્વામી આ દેવના विषयमा भावी२ प्रभुने मेवे। प्रश्न पूछे छे ४-“अत्थिणं भंते ! जंभया देवा, जंभया देवा” 8 सावन् ! '' ५४ शु १२७४ २२५. શીલ, તિર્યકવાસી જૈભક દેવેનું વાચક છે? मडावीर प्रभुने। उत्त२-" हता, अस्थि " ७गौतम ! - gazaq' પદ જંભદેવનું વાચક છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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