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________________ भगवतीसूत्रे अम्बडशिष्यवक्तव्यता। मूलम्-'तेणं कालेणं तेणं समए णं अम्मडस्स परिवायगस्त सत्त अंतेवासीसया गिम्हकालसमयंसि, एवं जहाउववाइए जाव आराहगा॥सू० ३॥ ___ छाया-तस्मिन् काले, तस्मिन् समये अम्बडस्य परिव्राजकस्य सप्त अन्ते. वासि शतानि ग्रीष्मकालसमये, एवं यथा-औपपातिके यावद् आराधकाः॥.३।। टीका-गतिप्रस्तावात् अम्बडशिष्यवक्तव्यतां प्ररूपयितुमाह- तेणं कालेणं, तेणं समएणं, अम्मडस्स परिधायगस्त सत्त अंतेवासीसया गिम्हकालसमयंसि एवं जहा उपवाइए जाव आराहगा' तस्मिन् काले, तस्मिन् समये, अम्बडस्य परिवाजकस्य सप्त अन्ते वासिशतानि-सप्तशतानि अन्तेवासिनः-शिष्याः, ग्रीष्मकाल. समये एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण यथा औपपातिके प्रतिपादिताः यावत्-आराधकाः जीवों का सद्भाव रहता है-फिर भी यहां पर जो विचार किया गया है वह प्रकृत में प्रथम जीव की अपेक्षा से ही किया गया है । सू० २॥ अम्बशिष्यवक्तव्यता'तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मइस्स' इत्यादि। टीकार्थ-गति के प्रकरण से यहां अम्बशिष्य की वक्तव्यता की प्ररूपणा की गई है-'तेणं कालेग तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वाय. गस्स अतेवासी सया गिम्हकालसमयंसि एवं जहा उववाइए जाव आरा. हगा' उस काल और उस समय में अम्बडपरिव्राजक के ७०० सात सौ शिष्य ग्रीष्मकाल के समय में औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार इस प्रकार से आराधक हुए हैं-औपपातिक सूत्र में इस प्रकार से कहा गया हैग्रीष्मकाल में अम्बड़परिव्राजनक के ७०० सौ शिष्य गङ्गानन्दी के दोनों રહે છે, છતાં પણ અહીં જે એક જ જીવનો વિચાર કરવામાં આવ્યું છે, તે સ્વાભાવિક રીતે જ પ્રથમ જીવની અપેક્ષાએ જ કરવામાં આવ્યા છે. -13 शिष्य तव्यता" तेणं कालेण वेण समएण' अम्मडस्स" त्याहि ટીકાથ–ગતિને અધિકાર ચાલુ રહ્યો છે, તેથી અહી અખંડશિષ્યની वशति प्रातिनी तव्यतानुसूबारे नि३५ यु छ-" तेण' कालेण तेण सणएण' अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अटेवासी सया गिम्हकालसमयसि एवं जहा उववाइए जाव आराहगा" ते आणे भने त समये मम परि. ત્રાકના ૭૦૦ શિષ્યો ગ્રીષ્મકાળના સમયમાં, પપાતિક સૂત્રમાં વર્ણવ્યા પ્રમાણે આરાધક બન્યા હતા. ઔપપાતિક સૂત્રમાં આ વિષયને અનુલક્ષીને શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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