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________________ ३७० भगवती सूत्रे भंते! साललट्ठिया उण्हामिया, तण्हाभिहया, दवग्गिजालाभिहया, कालमासे कालं किच्चा जान कहिं गच्छहि कर्हि उववज्जिहिह ' हे भदन्त ! शालयष्टिकाशालशाखा उष्णाभिहता - रवितापतापिता तृषाहिता -पिपासापीडिता, दावाग्निजालाभिहता - दावानलज्यालादग्धा सती काळमासे कालं कृत्वा - यावत् - कुत्र गमिष्यति, कुत्र उत्पत्स्यते ? भगवानाह - गोयमा ! इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले महेसरीए नगरीए सामलिरुक्खत्ताए पच्चायाहि ' हे गौतम! -अस्मिन्नेव जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे विन्ध्यगिरि पादमूले माहेश्वर - माहेश्वरी नाम्न्यां नगर्यां सा शाळयष्टिका शाल्मलिवृक्षतया प्रत्यायास्यति पुनरुत्पत्स्यते, 'सा णं तत्थ अच्चियवंदिययजाव लाउल्लोइयमहिए यावि होगा। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'एस भंते ! साललडिया उन्हाभिहया तहाभिया, दवग्गिजालाभिया कालमासे कालं किच्चा जाव कहि ववज्जिहिद्द' हे भदन्त ! यह शालयष्टिका - शालवृक्षकी शाखा जो कि रातदिन सूर्य के आताप से संतप्त होती रहती है, पिपासा से बाधित होती रहती है, और दावाग्नि की लपेटों से झुलसती रहती है कालमास में काल करके कहां जावेगी ? कहां उत्पन्न होवेगी ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंझगिरीपायमूले महेसरीए नयरीए सामलिरुक्खत्ताए पच्चायाहिद्द' हे गौतम ! इसी जंबूद्वीपनाम के द्वीप में भरतवर्ष में, विन्ध्यगिरि के पादमूल में, माहेश्वरी नगरी में वह शालयष्टिका - शाल्मलिवृक्षरूप से उत्पन्न होगी, 'सा णं तस्थ अच्चियवंदियपूइय जाव लाउल्लोश्यमहिए हवे गौतम स्वामी सेवा प्रश्न पूछे छे है-" एस भंते ! साललट्टिया उहाभिया, तहाभिया, दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा जाव कहि गच्छeिs कहिं उववज्जिहिइ ?” हे भगवन् ! शासयष्टिठा (शासवृक्षनी शाखा) કે જે નિરંતર સૂર્યના તાપ સહન કર્યાં કરે છે, પિપાસા (તૃષા)થી પીડાયા કરે છે, અને દાવાગ્નિની જવાળાઓ વડે દાઝયા કરે છે, તે કાળના અવસર આવતાં કાળ કરીને કયાં જશે ? કર્યાં ઉત્પન્ન થશે ? भहावीर अलुनो उत्त२" गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले महेसरीए नयरीए सामलिरुक्खत्ताए पचायाहिइ" हे गौतम ! भा જમ્મૂઠ્ઠીપ નામના દ્વીપમાં ભારતવષ માં વિધ્યગિરિના પાદમૂળમાં (તળેટીમાં), भाडेश्वरी नगरीमां ते शासयष्टि। शास्भसिवृक्ष ३ये उत्पन्न थशे. " साणं तत्थ अच्चिय वंदिय पूइय जाव लाउलोइयमहिए यावि भविस्सइ" ते शादभसिवृक्ष શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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