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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १४ उ०८ सू० २ जीवविशेषगतिनिरूपणम् ३७१ भविस्सइ ' स खलु शाल्मलिवृक्षतया उत्पन्ना शालयष्टिका, तत्र-माहेश्वरी नग. र्याम् अचितवन्दितपूजिता अर्चिता चासौ वन्दिता चेति अचिंतवन्दिता तथा भूताचासौ पूजिता चेति तथाविधा, यावत् सत्कारिता सम्मानिता, लिप्तोल्लोचितमहिता चापि भविष्यति, गौतमः पृच्छति-' से भंते ! तोहितो अणंतरं उबाहिता० ?' हे भदन्त ! सा खलु शालयष्टिका शाल्मलिवृक्षत्वेन उत्पन्ना सती तेभ्योऽनन्तरं-ततः पश्चात् , उद्धृत्य-मरणधर्म प्राप्य कुत्र गमिष्यति, कुत्र उत्पत्स्यते ? भगवानाह- सेसं जहा सालरुक्खस्स जाव अंतं काहिइ' हे गौतम ! शेषं यथा शालवृक्षस्य वक्तव्यता उक्ता तथैव शालयष्टिकाया अपि वक्तव्या, तथा च यावत् सा शालयष्टिकाऽपि शाल्मलिवृक्षतयोत्पन्नानन्तरं महायावि भविस्तई' वह शाल्मलिवृक्षरूप से उत्पन्न हुई शालयष्टिका उस माहेश्वरी नामकी नगरी में अर्चित होगी, वंदित होगी, पूजित होगी, यावत्-सत्कारित होगी, सन्मानित होगी, तथा इसका चबूतरा गोम. यादि से लिपा पुना रहेगा, जलादि से प्रक्षालित रहेगा, इस प्रकार से यह वहां जनता में मान्यता प्राप्त करनेवाली होगी।। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से णं भंते ! तोहितो अणंतरं उव्वहिता' हे भदन्त ! शाल्मलिवृक्ष से उत्पन्न हुई वह शालयष्टिका जब वहां से कालमास में काल करेगी। तब कहा जावेगी कहाँ उत्पन्न होगी ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सेसं जहा सालरुक्खस्स जाव अंतं काहिह' हे गौतम ! जिस प्रकार से शालवृक्ष की वक्तव्वता कही गई है, उसी प्रकार से शालयष्टिका की भी वक्तव्यता कहनी चाहिये, રૂપે ઉત્પન્ન થયેલી શાલયણિકા માહેશ્વરી નગરીમાં અર્ચિત થશે, વંદિત થશે, પૂજાશે, સત્કારિત થશે, સન્માનિત થશે, તથા તેને ચબૂત છાણદિ વડે લીપાતે રહેશે, કે તે વૃક્ષ પર જળાદિનું સિંચન કરશે, આ પ્રકારે તે ત્યાં જનતા દ્વારા માન્ય (માન પ્રાપ્ત કરનારી) બનશે. गौतम स्वामीना प्रश्न-" से णं भंते ! तओहितो अर्णतरं उध्वद्वित्ता०१" હે ભગવન! શામલિ વૃક્ષ રૂપે ઉત્પન્ન થયેલી તે શાલયટિકા, જ્યારે ત્યાંથી કાળને અવસર અાવતા કાળ પામશે, ત્યારે ક્યાં જશે ? ક્યાં उत्पन्न थशे ? मडावीर प्रभुने। उत्तर-"सेसं जहा सालरुक्खस्स जाव अत' काहिह" હે ગૌતમ ! જે પ્રમાણે ચાલવૃક્ષની વક્તવ્યતા કરવામાં આવી છે, એ જ પ્રમાણે શાલખ્રિકાની બાકીની વકતવ્યતા પણ સમજવી એટલે કે તે શાલ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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