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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० ८ सू० २ जीवविशेषगतिनिरूपणम् ३६९ भूत्वा दिव्यः-प्रधानः, सत्यः सत्यावपात:-सत्यः अवपातः सेवा यस्य स सत्यावपातः-सफलसेवः, सनिहितमातिहार्यः-सनिहित-सम्यक्तया विहितं, पातिहार्य प्रतीहारकर्म-सानिध्यं देवेन यस्य स सन्निहितमातिहार्यः, लिप्तोल्लोचितमहितः-लिप्तः गोमयमृत्तिकादिना, उल्लोचितः-प्रक्षालितो जलादिना, महितः पूजितश्चापि भविष्यति, गौतमः पृच्छति-' से णं भंते ! तओहितो अणंतरं उब्वहिता कहिं गमिहिइ ? हे भदन्त ! स खलु शालवृक्षः ततः अनन्तरम्-शाल. वृक्षतया उत्पन्नानन्तरम् , उदृत्त्य-कालं कृत्वा, कुत्र गमिष्यति ? कुत्र उत्पस्यते ? कुत्र जनिष्यते ? भगवानाह- गोयमा ! महाविदेहे सिज्झिहिइ जाव अन्तं काहिय' हे गौतम ! स शालक्षः ततः-उद्वर्तनान्तरं महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति, यावत्-भोत्स्यते, सर्वदुःखानाम् अन्त करिष्यति । गौतमः पृच्छति-'एस -प्रधान और सत्यरूप बनेगा। यह सफल सेवावाला होगा । देव इसका अच्छी प्रकार से सानिध्य करेंगे। यह जहां पर खडा होगा वहां की भूमिका भाग गोमयादि से लिपा पुता रहेगा। जलादि से प्रक्षालित होता रहेगा। इस प्रकार से यह महित-मान्य होगा। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से गंभंते! तओहितो अणंतरं उज्वहित्ता कहिं गमिहिइ' हे भदन्त ! वह शालवृक्ष वहाँ से जब मरण करेगातब कहां जावेगा? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! महाविदेहे सिज्झिहिइ, जाव अंतं काहिई' हे गौतम ! जब वह शालवृक्ष वहां से मरण करेगा-तय वह सीधा महाविदेहक्षेत्र में उत्पन्न होगा और वहां से वह सिद्ध होगा, बुद्ध होगा और समस्त दुःखों का अन्त करनेवाला સન્માનિત થશે. ત્યાં તે દિવ્ય (ઉત્તમ) અને સત્યરૂપ બનશે, સફળ સેવાવાળું બનશે, દે તેનું સાંનિધ્ય કરશે–એટલે કે ત્યાં દેવે નિવાસ કરશે તે જ્યાં ઉગશે, ત્યાં તેની આસપાસની ભૂમિ પર) લેકે છાણ આદિ વડે લીંપીગૂંપીને તે ભાગની સજાવટ કરશે તથા તેના ઉપર જલાદિનું સિંચન કરશે આ પ્રકારે તે શાલવૃક્ષ મહિત (માન્ય, મહિમાવાન) બનશે. गौतम स्वाभाना प्रश्न-" से णं भंते ! तओहिंतो अणंतरं उध्वट्टित्ता कहिं गमिहिइ १" से सावन् ! ते वृक्ष त्यांथा भरी ४यां ? ___महावीर प्रभुना उत्तर-" गोयमा! महाविदेहे सिज्झिहिइ, जाव अंतं काहिह” उ गीतम ! शासवृक्ष त्यांथा भरीत भाविड क्षेत्रमा (भनुष्य રૂપે) ઉત્પન્ન થશે અને ત્યાંથી સિદ્ધ, બુદ્ધ મુક્ત આદિ થઈને સમસ્ત દુઓને અંત કરશે એટલે કે નિર્વાણ પામશે. भ० ४७ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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