________________
२४८
भगवतीसूत्र खलु परिणाम प्राप्तः ? भगवानाह 'गोयमा ! दुविहे परिणामे पण्णत्ते' हे गौतम ! द्विविधः परिणामः प्रज्ञप्तः 'तं जहा-जीवपरिणामे य, अजीव परिणामे य, एवं परिणामपयं निरवसेसं भाणियव्वं ' तद्यथा-जीवपरिणामश्च, अजीव परिणामश्च, तत्र परिणमनं-द्रव्यस्यावस्थान्तरगमनं परिणामः, तथाचोक्तम्-परिणामो धर्थान्तरगमनं न च सर्वथा व्यवस्थानम् । न तु सर्वथा विनाशः परिणामस्तविदामिष्टः।।१॥ इति, एवं रीत्या परिणामपदं-मज्ञापनायां त्रयोदशं परिणामपदं निरवशेष-सर्व भणितव्यम् अत्र । तथाचोक्तं प्रज्ञापनायम्-" जीवपरिणामेणं भंते ! काविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दसविहे पण्णत्ते, तं जहा गइपरिणामे इंदियपरिणामे, एवं कमाय लेसा, जोग, उवओगे नाणदंसणचरित्तवेय परिणामे" इत्यादि, तथैव कितने प्रकार का कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा' ! दुविहे परिणामे पण्णत्ते' हे गौतम ! परिणाम दो प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा' जो इस प्रकार से है-'जीवपरिणामे य अजीवपरिणामे य' एक जीवपरिणाम और एक अजीवपरिणाम' 'एवं परिणामपयं निरवसेसं भाणियव्वं' इस प्रकार से यहां पर परिणाम पद सम्पूर्णरूप से कहना चाहिये । यह परिणाम पद प्रज्ञापना सूत्र का द्रव्य का एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिणत होना इसका नाम परिणाम-परिणमन है। सो ही कहा है-'परिणामो ह्यन्तिरगमनं' इत्यादि । इस प्रकार से प्रज्ञापना का यह १३ वां परिणाम पद समस्त यहां कहना चाहिये-प्रज्ञापनों में ऐसा कहा गया है-'जीवपरिणामे गं भंते ! कइविहे पण्णत्ते' हे भदन्त ! जीव परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभु ने वहां ऐसा कहा है-'गोयमा'
ભગવન્! પરિણામના કેટલા પ્રકાર કહ્યા છે? તેને ઉત્તર આપતા મહાવીર प्रभु 23-" गोयमा ! दुविहे परिणामे पण्णत्ते" गौतम ! माना परिणाम छ. " तंजहा" त प्रा। मा प्रमाणे छे-“ जीवपरिणामे य अजीवपरिणामे य” (१) ७१५रिणाम भने (२) ५७१५२४ाम. “ एवं परिणामपयं निरवसेसं भाणियव्वं " . २ प्रज्ञायनानु १ . परिणाम પદ અહીં સંપૂર્ણરૂપે કહેવું જોઈએ દ્રવ્યનું એક અવસ્થામાંથી બીજી અવस्थामा परिणत थयु, तेनु नाम परिणाम (परिमन) छ. ४५ है" परिणामो ह्यर्थान्तरगमनं" त्याह
प्रज्ञापनाना १३i Hi मा प्रमाणे धु-" जीवपरिणामे गं भंते ! कइविहे पणत्ते १" ! परिणाम मा ४२नु छ ?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧