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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १४ उ०४ सू० ५ परिणाममेदनिरूपणम् २४९ "अजीवपरिणामे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ! गोयमा ! दसविहे पण्णत्ते, तं जहा बंधणपरिणामे १, गइपरिणामे २, एवं संठाण ६, भेय ४, वन २, गंध ६, रस ७, फास ८, अगुरुल हुय ९, सद्दपरिणामे १०," इत्यादि । अन्ते गौतम ! आह-' सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरह' हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तं सत्यमेव हे भदन्त ! तदेवं-भवदुक्तं सत्यमेवेति यावत् विहरति ॥ सू०५॥
इति चतुर्दशशतके चतुर्थोद्देशकः समाप्तः हे गौतम ! 'दसविहे पणत्ते' जीवपरिणाम दश प्रकार का कहा गया है-तं जहा-'गइपरिणामे, इंदियपरिणामे, एवं कसाय, लेस्सा, जोग, उवओगे, नाणदंसणचरित्तवेयपरिणामे' इत्यादि । इसके बाद गौतमने पुनः ऐसा पूछा-'अजीवपरिणामे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते' हे भदन्त ! अजीव परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभु ने कहा'गोयमा ! दसविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! अजीव परिणाम दश प्रकार का कहा गया है-'तं जहा-बंधणपरिणामे १, गइपरिणामे २, एवं संठाण ३, भेय ४, वन्न ५, गंध ३, रस ७, फास ८, अगुरुलहुय ९, सहपरि. णामे १०'इत्यादि । अब अन्त में गौतम प्रभु से कहते हैं-'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरई' हे भदन्त ! आपका कहा हुआ यह सब सत्य है, हे भगवन् ! आपका कहा हुआ यह सब सत्य ही है। इस प्रकार कहकर वे गौतम यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये।सू०५।
॥ चतुर्थ उद्देशक समाप्त १४-४ ॥ महावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा!" गौतम ! "दसविहे पण्णत्ते" परिणाम इस प्रा२नु यु छ." तंजहा" ते प्रा। मा प्रमाणे - "गड परिणामे, इंदियपरिणामे, एवं कसाय, लेस्सा, जोग, उवओगे, नाणदसणचरित्तवेयपरिणामे" त्यादि गौतम स्वामी ७वे मे। प्रश पूछे छे 3"अजीवपरिणामे गं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?” उ मावन् ! म०१५रिणाम કેટલા પ્રકારનું કહ્યું છે?
महावीर प्रभुनी उत्तर-“ गोयमा ! दसविहे पण्णत्ते "3 गीतम! सपरिणाम इस प्रा२नु युछे. “ तंजहा" ते प्रा। नये प्रमाणे
-“बंधपरिणामे१, गइपरिणामे२, एव' संठाण३, भेय४, बम, गंध, रस७, फास८, अगुरुलहुय९, सहपरिणामे १०" त्याह
मन्त गौतम स्वामी हे 23-" सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरह" " वन् ! मानू थन सत्य छे. भगवन् ! मा२ કહ્યું તે સર્વથા સત્ય જ છે,” આ પ્રમાણે કહી મહાવીર પ્રભુને વંદણ નમસ્કાર કરીને તેઓ પોતાના સ્થાને બેસી ગયા. સૂપા.
॥या। देश सभात ॥१४-४॥ भ० ३२
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧