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________________ प्रमैन्द्रिका टीका श० १४ उ०४ सू० १ पुद्गल परिणामविशेषनिरूपणम् २२९ 'लुक्खी वा, अलक्खी वा ? ' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त । एष खलु पुद्गलः - परमाणुरूपः स्वरूपश्च 'तीयमणंत सासयं समयं ' इति विभक्तिविपरिणामेण अतीते, अनन्ते - अपरिमाणत्वात् अपरिच्छिन्ने अन्तरहिते अतएव अक्षयरहितत्वाद शाश्वते समये - काले, समयम् - एक समयपर्यन्तं किं रूक्षस्पर्शसद्भावाद् रूक्षी रूक्षर पर्श वान् तथा किम् समयम् - एकसमयपर्यन्तम् अरूक्षस्पर्शसद्भाबाबू अरूक्षी-स्निग्धस्पर्शान् अभूत् ? इदं च विशेषणपदार्थद्वयं परमाणौ स्कन्धे च संभाव्योक्तम् ।। अथ केवलं स्कन्धापेक्षयोच्यते- समयम् - एकसमयपर्यन्तमेव रूक्षी वा अरूक्षी वा अलुक्खी, समयं लुक्खी वा अलुक्खी वा' हे भदन्त ! यह पुद्गल जो कि परमाणुरूप भी है और स्कन्धरूप भी है अपरित होने से अपरिच्छिन्न, अन्तरहित तथा क्षयरहित होने से शाश्वत ऐते अनन्त शाश्वत अनीत काल में एक समय तक क्या रुक्षी - रूक्षस्पर्शबाला हुआ है ? तथा एक समय तक क्या वह अरूक्षस्पर्श के सद्भाव से अक्षी - स्पिर्शवाला हुआ है ? तथा एक समय तक क्या वह रूक्ष अरूक्ष दोनों स्पर्शोवाला हुआ है ? यहां 'तीयमणंत सासयं समयं' में विभक्ति का विपरिणाम हुआ है अर्थात् है तो यहां द्वितीया, पर अर्थ किया गया है सप्तमी विभक्ति को लेकर इसीलिये 'अतीते अनन्ते शाश्वते समये' ऐसा पाठ लगाया है। ये दो विशेषण- रुक्षी और अरूक्षी - परमाणु और स्कन्ध में संभावना करके कहे गये हैं । तथा वह रूक्षी और अरूक्षीरूक्ष स्पर्शवाला और स्निग्ध स्पर्शवाला एक समय तक ही हुआ है' समय अलुक्खी, समय लुक्खी वा अलुक्खी वा १” हे भगवन् ! युद्धस કે જે પરમાણુ રૂપ પણ છે અને સ્મુધ રૂપ પણ છે, અપરિમિત હૈાવાથી અપરિચ્છિન્ન, અન્તરહિત તથા ક્ષયરહિત હાવાથી શાશ્વત એવા અનંત શાશ્વત અતીત (ભૂત) કાળમાં એક સમય સુધી શુ` રૂક્ષસ્પર્શીવાળું થયું છે ? તથા એક સમય સુધી શું તે અરૂક્ષસ્પના સદ્ભાવને લીધે અક્ષ (સ્નિગ્ધસ્પવાળુ) થયુ છે ? તથા એક સમય સુધી શું તે ક્ષ-અરૂક્ષ બન્ને સ્પवाथ्यु छे ? महीं तीयमतं सासयं समयं " भां विलतिनुं वियरણામ થયુ છે એટલે કે અહીં બીજી વિભક્તિના પ્રયાગ થવા છતાં પણુ સાતમી વિભકિતને અથ પ્રકટ થયા છે, તેથી 'अतीते अनन्ते शाश्वते समये " थे। पाह व्यस्त थयो छे, इक्षी भने अक्षी (३क्ष भने अक्ष) આ બન્ને વિશેષણાને પરમાણુ અને સ્ક ંધમાં સંભાવના માનીને પ્રયોગ 66 6. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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