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________________ २०६ भगवतीसूत्रे व्यतिव्रजेत् -उल्लय नो गच्छेत् , तदुपसंह रन्नाह-' से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुरुवइ-जाव नो वीइएना' हे गौतम ! तत्-अथ तेनार्थन, एवमुच्यते-यावत् अन्त्ये को देनः कथित् व्यनित्रजेत् , असत्येकको देवः कश्चित् नो व्यतित्रजेदिति ! गौतमः पृच्छति-'असुरकुमारेणं भंते ! महाकाए महासरीरे०' हे भदन्त ! असुरकुमारः खलु महाकाय:-विशालपरिधारः, महाशरीरः-वृहत्तनुः, अनगारस्य भावितात्मनो मध्यमध्येन कि व्यतिब्रजेत् ? इति पृच्छा, भगवानाह-'एवं चेत्र' एवं देवदंडओ भाणियब्धो जाव वेमाणिए' हे गौतम ! एवमेव-उपर्युक्त सामान्यदेववदेव असुरकुमारोऽपि देवविशेषो महाकायो महाशरीरः कश्चिद् मायी बीच से होकर नहीं निकलता है। अर्थात् उनका उल्लङ्घन कर वह नहीं जाता है। उन्हें वंदना आदि अवश्य करता है । ‘से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ, जाव नो वीइवएज्जा' इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि कोई एक देव उन्हें देखकर भी वन्दना आदि किये विना चला जाता है और कोई एक देव उन्हें देखकर वन्दना आदि करके जाता है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'असुरकुमारे णं भंते! महाकाए महासरीरे०' हे भदन्त ! विशाल परिवारवाला और विशाल कायवाला असुरकुमार देव क्या भावितात्मा अनगार के बीच से होकर निकल जाता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं चेव' एवं देवदंडओ भाणियन्यो जाव वेमाणिए' उपर्युक्त सामान्यदेव से असुरकुमार देव भी विशाल परिवारवाला एवं विशाल शरीरबाला हैदो થઈને ચાલ્યા જાતે નથી એટલે કે તેમને વંદણા આદિ કર્યા વિના તેમનું Sear ॥२ ते नथी. “से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव नो वीइवएज्जा" के गौतम ! ते २२ मे मे ४ह्यु छ , ७१ तेमन જેવા છતાં પણ તેમને વંદણુ આદિ કર્યા વિના ચાલ્યા જાય છે અને કંઈક દેવ તેમને જોઈને વંદણા આદિ કરીને જ જાય છે. गौतम स्वामीना ५श्न-" असुरकुमारे णं भंते ! महाकाए महासरीरे" હે ભગવન્! વિશાળ પરિવારવાળે અને વિશાળ શરીરવાળે અસુરકુમાર દેવ શું ભાવિતાત્મા અણગારને વંદણા આદિ કર્યા વિને તેમનું ઉલ્લંઘન કરીને નીકળી જાય છે ખરો? महावीर प्रभुना उत्तर-एवं चेच-एवं दंडओ भाणियव्यो जाव वेमाजिए" सामान्य वनारे ४थन मही. ५६५ सभा सामान्य हवन જેમ અસુરકુમાર દેવના પણ બે પ્રકાર કહ્યા છે-(૧) માચીમિથ્યા દષ્ટિ ઉપ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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