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तथा चोक्तम्- सर्वज्ञ मन्त्र वाद्यपि यस्य न सर्वस्य निग्रहे शक्तः ।
मिथ्यामोहोन्मादः स केन किल कथ्यतां तुल्यः ? " ॥ १ ॥ इति, उपर्युक्तोन्मादद्वयमपि चतुर्विंशतिदण्डकै : योजयितुमाह - नेरइयाणं भंते ! दुविहे उम्मार पण्णत्ते ?' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! नैरयिकाणां खलु कतिविध उन्मादः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह - 'गोयमा ! दुविहे उम्माप पण्णत्ते' हे गौतम! नैरयिकाणां द्विविध उन्मादः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा - जक्वावेसे य, मोहणिज्जस्स य कम्मस्स उदपणं' तद्यथा-यक्षावेशश्थ, मोहनीयस्य च कर्मणः उदयेन उत्पन्नश्च । गौतमः पृच्छति-से केणटुणं भंते ! एवं बुच्चइ-नेरइयाणं दुविहे उम्माए पण्णत्ते परन्तु जो यक्षावेशरूप उन्माद है वह सुखविमोचनतर है क्योंकि मंत्रादि से भी वह दूर किया जा सकता है । सो ही कहा है - सर्वज्ञमंत्रवाद्यपि ' इत्यादि ।
भगवतीसूत्रे
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'नेरइयाणं भंते! कहविहे उम्माए पण्णत्ते' हे भदन्त ! नैरयिकों के कितने प्रकार का उन्माद कहा गया उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! दुविहे उम्माए पण्णसे' हे गौतम! नैरयिकों के दो प्रकार का उन्माद कहा गया है। 'तं जहा' जो इस प्रकार से है 'जक्खावेसे य, मोहणिज्जस्त य कम्मस्स उदपणं' एक यक्षावेशरूप उन्माद और दूसरा मोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न हुआ उन्माद | अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'से केणटुणं भंते! एवं बुच्च, नेरइयाणं दुविहे उम्मार पण्णत्ते' हे भदन्त । ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि नैरयिकों के दो प्रकार का उन्माद होता પ્રકારના ઉન્માદ અસાધ્ય ડાય છે. યક્ષાવેશ રૂપ ઉન્માદ મત્રાદિ દ્વાશ પણ દૂર થઈ શકે છે, તેથી તેને સુવિમાચનતર (સુખથી દૂર કરી શકાય मेवेो ह्यो छे छे - " सर्वज्ञ मंत्रत्राद्यपि " त्याहिगौतम स्वामीनी प्रश्न - " नेरइयाणं भंते ! कइविहे उम्मार बण्णत्ते !" ભગવન્! નારકાના ઉન્માદના કેટલા પ્રકાર કહ્યા છે?
महावीर अलुना उत्तर- " गोयमा ! दुविहे उम्मार पण्णत्ते - तंत्रहा " डे गौतम ! नारट्ठीना उन्भाहना मे प्रहारो छे, के नीचे प्रभारी हे - " जक्खावैसे य, मोहणिज्जरस य कम्मरस उदपणं " ( १ ) यक्षावेश ३५ उन्भार भने (ર) માહનીય કમના ઉડ્ડયથી ઉત્પન્ન થયેલેા ઉન્માદ,
गौतम स्वाभीनो प्रश्न- " से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चद्द, नेरइयाणं दुविहे उम्माए पण्णत्ते " हे भगवन् ! आप शा अरणे भेषु उडे। छो से नाश्ना
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧