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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० १ सू० २ नरकगतिनिरूपणम्
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शीघ्रागतिर्भवति, कथं कीदृशः शीघ्रो गतिविषयः शीघ्रगतिहेतुत्वात् शीघ्रो गति - विषयः गति हेतुत्वास्काल इत्यर्थः, नैरयिकाणां की दृशी शीघ्रागतिः कीदृशश्च तत्काल: प्रज्ञप्तः ? इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा ! से जहानाम ए- केइपुरिसे तरुणे बलवं जुगव जाव निउणसिप्पोवगए आउंटियं बाहं पसारेज्जा पसारियं वाहं आउंटेना' हे गौतम! तू - अथ यथानामेति वाक्यालङ्कारे, कश्चित्पुरुषः तरुण:- प्रवर्द्धमान
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नरकगतिवक्तव्यता
'नेरइया णं भंते! कहं सीहा गई' इत्यादि ।
टीकार्थ- पहिले देवगति के विषय में कहा है। इसलिये उसी गत्यधिकार को लेकर नरकगति की प्ररूपणा सूत्रकार ने इस सूत्रद्वारा की हैइसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है- 'नेरइयाणं भंते । कहं सीहा गई कहं सीहे गविस पण्णत्ते ' नैरयिकों की कैसी शीघ्रगति कही गई है ? और उस शीघ्र गति का विषय कहा गया है ? यहां शीघ्रगतिविषय से काल -समय ग्रहण हुआ है- क्योंकि वही शीघ्रगति में हेतु होता है । इसलिये इस प्रश्न का निष्कर्षार्थ यही निकालता है कि नारकों की शीघ्र गति कैसी होती है और उस शीघ्रगति का काल कैसा होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! से जहानामए केइपुरिसे तरुणे बलवं जुगवं जाव निउणसिप्पोबगए आउंटियँ बाहं पसारेज्जा, पसारियं वा बाई आउटेज्जा' हे गौतम! जैसे कोई पुरुष तरुण हो प्रबद्ध—-नरम्शति वहुतव्यता
नेरइयाणं भंते! कहूं सीहा गई" इत्याहि
ટીકા –આની પહેલાના સૂત્રમાં દેવગતિના વિષયમાં કહેવામાં આવ્યુ હવે નરકગતિના વિષયમાં સૂત્રકાર પ્રરૂપણા કરે છે—–
गौतम स्वामीनी प्रश्न - " नेरइया णं भंते ! कह सीहागई, कई सीहे इविस पण्णत्ते " हे भगवन् ! नारानी देवी शीघ्रगति उही छे ? भने ते शीघ्रगतिना विषय (अज) डेंटला उह्यो छे? सही " शीघ्रगतिविषय " આ પદ કાળનુ' વાચક છે, કારણ કે શીઘ્રગતિમાં કાળ જ હેતુરૂપ હોય છે તેથી પ્રશ્નના ભાવાથ આ પ્રમાણે ફલિત થાય છે-“ નારકાની શીઘ્રગતિ કેવી હાય છે? અને તે શીઘ્રગતિના કેટલા કાળ હાય છે ? ”
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महावीर अलुना उत्तर- " गोयमा ! से जहा नामए केइ पुरिसे तरुणे बलयं जुगवं जाव निउणसिप्पोवगर आउंटियं बाहं पसारेज्जा, पसारियं बाह आउंटेज्जा " हे गौतम ! अर्ध पुरुष युवान होय, मलवान होय (तरु
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧