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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ०९ सू०१ वैक्रियशक्तिसामर्थ्यनिरूपणम् १२७ सगर्भ पुलाकं, सौगन्धिकं, ज्योतिसम् , अङ्कम् , अञ्जनम् . रन्नम् , जातरूप्यम् , अञ्चनपुलाकम् , फलिहं, रिष्टं-श्यामरत्नं गृहीत्वा गच्छेत् , तथैव अनगारो भावितात्मा लोहिताक्षादि हस्तकृत्यगतेन आत्मना धृतलोहिताक्षादिरूपाणि विकुर्वित्वा अर्ध्वं विहायसि उत्पतेत् , एवं उप्पल. हत्थगं, एवं पउमहत्थगं, एवं कुमुदहत्थगं, एवं जाव' एवं पूर्वोक्तरीत्यैव कश्चित् पुरुषः उत्पलं हस्तगतं कृत्वा गच्छेत् , एवं कुमुदं हस्तगतं कृत्वा, एवं यावत्-नलिनं हस्तगतं कृत्वा, सुभगं हस्तगतं कृत्वा, सौगन्धिकं हस्तगतं कृत्वा, पुण्डरीकं हस्तगतं कृत्वा, शतपत्रं हस्तगतं कृत्वा गच्छेत् तथैव अनगारो भाविता स्मा उत्पलादिहस्तकृत्यगतेन आत्मना धृतोत्पलादिपुरुषरूपाणि विकुर्वित्वा ऊर्च वैडूर्य को यावत्-लोहिताक्षको, मसारयल्ल को, हंसगर्भ को, पुलाक को, सौगन्धिक को, ज्योतिरस को, अंक को, अंजन को, रत्न को, जातरूप्य को, अञ्चनपुलाकको, फलिह को और रिष्ट-श्याम रत्न को लेकर चलता है, उसी प्रकार से भावितात्मा अनगार भी अपने द्वारा धृत लोहिनाक्षादिवाले रूपों की विकुर्वणा करके ऊपर आकाश में उड सकता है। 'एवं उप्पलहत्थगं, एवं पउमहत्थगं, एवं कुमुदहस्थगं एवं जाव' इसी प्रकार जैसे कोई पुरुष उत्पल (कमल) को हाथ में लेकर के, पद्म को हाथ में लेकर के, कुमुद को हाथ में लेकर के, यावत् नलीनकमलविशेष को हाथ में लेकर के, सुभग एक जात के कमलविशेष को हाथ में लेकर के, मौगन्धिक-कमलविशेष को हाथ में लेकर के, पुण्डरीक-कमलविशेषको हाथ में लेकर के, शतपत्र-सौ पांखडी के कमल को हाथ में लेकर के, चलता है, उसी प्रकार से भावितात्मा अन. Nonने, वैयन, बोडिताक्षने, मसा२।सने, सालन, पुसाने (भात), सौगन्धिने, न्योतिरसने, मने (डून), मन, २त्नने, त३यन, અંજન પુલાકને, ફલિહને અને રિષ્ટને (શ્યામ રત્નને) લઈને ચાલે છે, એજ પ્રમાણે ભાવિતાત્મા અણગાર પણ પોતાના દ્વારા લેહિતાક્ષાદિ ગ્રહણ કરેલાં ३पानी विप शन 2 241 शभा डीश छ. “ एव उप्पलहत्यगं, एवं परमहत्थगं, एवं कुमुदहत्थगं, एवं जाव" मा पुरुष हाथमा કમળને લઈને ચાલે છે, પદ્મને હાથમાં લઈને ચાલે છે, કુમુદને હાથમાં सधने या छ, मे प्रमाणे नलिनन (मविशेषन), सुमगन (भा. शेषन), सोधिने (विशेषन) पुरीने (भविशेषन) मन शत. પત્રને–સો પાંખડીઓવાળા કમળને હાથમાં લઈને ચાલે છે, એ જ પ્રમાણે શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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