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________________ १२० भगवतीसत्रे विकुर्वित्वा, ऊर्ध्वं विहायसि उत्पतेत् , 'एवं अयभारं, बभारं, तउयमारं, सीसगभारं हिरनमारं सुवन भारं वइरभारं' एवं पूर्वोक्तरीत्यैव, यथा कश्चित् पुरुषः अयोमारं-लोहभारम् , ताम्रभारम् , पुषभारम्-रङ्गभारम् , सीसकभारम् , हिरण्यभारम्-रजतभारम् , सुवर्णभारम् , वज्रभारम् गृहीत्वा गच्छेत् , एरमेव अनगारोऽपि भावितात्मा अयोभारादि हस्तकृत्यगतेन आत्मना अयोभारादि रूपाणि विकुर्वित्या ऊर्ध्वं विहायसि उत्पतेत् इति भावः । अपरं दृष्टान्तमाह' से जहानामए-वग्गुली सिया दोवि पाए उल्लंबिया उल्लंबिया उडूं पाया अहो सिरा चिद्वेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा वग्गुली किच्चगएणं अप्पाऊपर आकाश में उड़ सकता है क्या ? इसी प्रकार से 'अयभारं, तंबभारं, तउयाभारं, सीसगभारं, हिरन्नभारं, सुवन्नभारं, वहरभारं,' हे भदन्त । जैसे कोई पुरुष लोहभार को, तांबे के भार को, त्रपुष भार को, रांगे के भार को, सीसे के भार को हिरण्य के भार को-रजत के भार को, वज्र के भार को लेकर चलता है, इसी प्रकार से भावितात्मा अनगार भी क्या अयोभारादिरूपों की विकुर्वणा करके अपर आकाश में उड सकता है ? तो इन सब प्रश्नों का उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि हां, गौतम ! भावितात्मा अनगार भी इन पूर्वोक्त प्रनित रूपों की विकुर्वणा करके ऊपर आकाश में उड सकता है। ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से जहानामए वग्गुलीसिया दो वि पाए उल्लंबिया २ उड्दपाया अहोसिरा चितुज्जा, एवामेव ચટાઈ આદિને હાથમાં ગ્રહણ કરેલ હોય એવાં મનુષ્ય રૂપની વિકુણા उश२ ये शमi sी श छ मतं? प्रमाणे 'अयभारं, तंबभारं, तउयभारं, सीसगभार', हिरनमार', सुवन्नभार, वइरभार" २ ४ पुरुष मारने, diमानामारने, सतनामारने, सीसानामारने, योहानाભારને, સુવર્ણનાભારને, અને વજના ભારને હાથમાં લઈને ચાલે છે, એજ પ્રમાણે ભાવિતાત્મા અણગાર પણ શું અાભારાદિનું વહન કરતાં રૂપની વિદુર્વણા કરીને આકાશમાં ઊંચે ઉડી શકે ખરાં? આ પ્રશ્નને ઉત્તર આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે કે-હા, ગૌતમ! પૂર્વોક્ત સઘળાં રૂપની વિકુણા કરીને ભાવિતાત્મા અણગાર આકાશમાં ઊંચે ઊડી શકે છે, गौतम स्वाभान प्रश्न-“से जहा नामए वग्गुलीसिया दो वि पाए उल्लंवियार उड़ पाया अहोस्सिरा चिद्वेज्जा, एवामेत्र अणगारे वि भावियप्पा, શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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