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________________ ११० भगवतीसूत्रे खलु भदन्त ! कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा ! अट्ट कम्मपगडीओ पण्णताओ' हे गौतम ! अष्ट कर्भपकृतयः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-' एवं बंधट्ठिय उद्देसो भाणियबो निरवसेसो जहा पन्नागार' एवं-पूर्वोक्तरीत्येव, बन्धस्थित्युद्देशकः निरवशेषः-सम्पूर्णः, भाणितव्यो-वक्तव्यः, यथा प्रज्ञापनायास्त्रयोविंशतितमपदस्य द्वितीयोदेश के प्रतिपादितस्तथैवात्रापि प्रतिपत्तव्यः । अन्ते गौतम आह-' से भंते ! सेवं भंते ! ति' हे भदन्त ! तदेवं-भवदुक्तं सत्यमेव हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तं सत्यमेवेत्याशयः ॥ मू० १ ॥ इति श्री विश्वविख्यात जगद्वल्लभादिपदभूपितबालब्रह्मचारि 'जैनाचार्य' पूज्यश्री घासीलालव्रतिविरचितायां श्री "भगवती" सूत्रस्य प्रमेयचन्द्रिका ख्यायां व्याख्यायां त्रयोदशशतकस्य अष्टमोद्देशकः समाप्तः ॥१३-८॥ पण्णत्ताओ' हे भदन्त ! कर्मप्रकृतियां कितनी कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा-'गोयमा' हे गौतम ! 'अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ' कर्म प्रकृतियां आठ कही गई हैं । 'तं जहा' जो इस प्रकार से है-'एवं पंधहि उद्देसोभाणियव्यो निरवसेसे जहा पन्नवणाए' इस प्रकार यहां पूर्वोक्त रीति से प्रज्ञापना का बन्धस्थिति उद्देशक पूरा कहना चाहिये। अर्थात्-प्रज्ञापना के २३ वे पद के द्वितीयोद्देशक में जैसा कहा गया है, वैसा ही यहां पर कहना चाहिये, अब अन्त में गौतम 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! आपका कथन सर्वथा सत्य है, हे भदन्त ! आपका कथन सर्वथा सत्य है ऐसा कह कर यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो जाते हैं। सूत्र १॥ अष्टम उद्देशक समाप्त १३-८॥ भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ" मावन् ! ४ प्रतिया ४८सी ही छ ? तना उत्तर भापता महावीर प्रभु है-“गोयमा !" गीतम! " अदु कम्मगडीओ पण्णताओ" प्रकृति 28 ही ७. 'तं जहा त म भ प्रतिमा नाय प्रमाण छ-" एवं बंधठिइउद्देसो माणियव्वो निरवसेसो जहा पनवणाए" मा प्रमाणे गाड़ी પૂર્વોક્ત રીતે પ્રજ્ઞાપનાને “બસ્થિતિ ઉદ્દેશક” પૂરેપૂરે કહેવું જોઈએ. એટલે કે પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના બીજા ઉદ્દેશકના ૨૩માં પદમાં જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ કથન અહીં પણ થવું જોઈએ અને ગૌતમ સ્વામી भावार प्रभुने ४३ छे -" सेव भंते ! सेव भंते ! ति" भगवन् ! આપની વાત સર્વથા સત્ય છે. હે ભગવન્! આ વિષયનું આપે જે પ્રતિપાદન કર્યું, તે સર્વથા સત્ય છે, આ પ્રમાણે કહીને મહાવીર પ્રભુને વંદણું નમસ્કાર કરીને તેઓ પિતાને સ્થાને બિરાજમાન થઈ ગયા. સૂ૦૧. | | આઠમે ઉદ્દેશક સમાપ્ત . ૧૩–ા શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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