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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ ० ४ सू०१ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ४१ 'अहवा एगयो दो दुप्पएसिया खंधा, एगयो चउप्परखिए खंधे भवइ' अथवा एकत:-एकभागे द्वौ द्विपदेशिको स्कन्धौ भवतः, एकतः-अपरभागे चतुष्पदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा ए गयो दुप्पपसिए खंघे, एगयो दो तिप्पएसिया खंधा भवंति' अथवा एकतः-एकभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकत:-अपरभागे द्वौ त्रिप्रदेशिको स्कन्धौ भवतः, 'चउहा कज्जमाणे एगगओ तिनि परमाणुपोग्गला, पगयओ पंच पएसिए खंधे भवइ' अष्टपदेशिकः स्कन्धश्चतुर्धा क्रियमाणः एकत:एकभागे त्रयः परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकतः-अपरमागे पञ्चपदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयो दानि परमाणुपोग्गला, एगयो दुप्पएसिए खंधे, एगयो चउप्पएसिए खंधे, भवई' अश्या एकत:-एकभागे द्वौ पदमाणुपुद्गलौं भवतः, स्कंध होता है। अहवा एभय भो दो दुप्पएसिया खंधा, एगयो चउपएसिए बंधे भवइ' अथवा-एक भाग में दो दिप्रदेशिक स्कन्ध होते है, और दूसरे भाग में एक चतुष्पदेशिक स्कन्ध होता है । ' अहवाएगयो दुप्पएसिए खंधे, एगयो दो तिप्पएसिया खंधा मवंति' अथवा-एक.भाग में द्विप्रदेदिक स्कन्ध होता है, और एफभाग में दो त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं । 'चउहा कजमाणे एगयो तिमि परमाणुपोग्गला, एगयो पंचपएसिए खंधे भवई' यह अष्टप्रदेशिक स्कन्ध जष चार भागों में विभक्त किया जाता है-तत्र एक भाग में तीन परमाणुपुद्गल होते हैं, दूसरे भाग में पंचादेशिक स्कंध होता है। 'अहवाएगयो दोनि परमाणुगोग्गला, एगयो दुप्पएसिए खंधे, एगयओचउ. प्पसिए खधे भवइ' अथवा-एकभाग में दो परमाणुपुद्गल होते हैं, प्रशि४ २४५ ३५ वीर विनाn पY समपी 3 छ " अहवा-एगयओ दो दुप्पएसिया खंधा, एगयओ वउप्पएसिए खंधे " अथवा में दिशि २४५३५ બે વિભાગો અને ચાર પ્રદેશિક સ્કંધ રૂપ એક વિભાગ પણ સંભવી શકે छ. “अहवा-एगयओ दुप्पएसिए खंधे एगयओ दो तिप्पएसिया खंधा भवति" अथवा गे विलायम द्विघोशि४ से २४५ मन पाहीना से विलामा निशि मे २४५ ५ सलवी श छे. “च उहा कन्जमाणे एग. यओ तिन्नि परमाणुपोग्गला, एगयओ पंचपएसिए खंधे, भवइ" क्यारे मष्ट. પ્રાદેશિક સ્કંધના ચાર વિભાગો કરવામાં આવે છે, ત્યારે તે ચાર વિભાગે આ પ્રકારના સંભવી શકે છે–એક એક પરમાણુ પુદ્ગલવાળા ત્રણ વિભાગે भने ५५ २४ ३५ मे विला सलवी श छ. “ अहवा" A241-" एगयओ दोन्नि परमाणुपोग्गला, एगरओ दुप्पएसिए खंधे एगयओ च उप्पएसिए खंधे भवइ” मे ४ ५२मा पुगद ३५ मे विलासी, प्र.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦