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________________ ४० भगवतीसूत्रे पञ्च प्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा दो चउप्पएसिया खंभा भवंति ' अथवा द्वौ चतुष्पदेशिnt स्कन्धौ भवतः, 'तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एग छपएसए खंधे भव' अष्टमदेशिकः स्कन्धः त्रिधाक्रियमाणः, एकत:एकमागे द्वौ परमाणुपुलौ भवतः, एकतः - अपरभागे षट्पदेशिकः स्कन्धो भवति, ' अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयओ पंचपरसिए खंधे भवइ' अथवा एकत: - एकभागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकत: - अपरभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति एकत: - अन्यभागे पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ तिप्पएसिए खंधे, एगयओ चउप्पएसिए खं भव' अथवा एकतः- एकभागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः - अपरभागे त्रिपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः - अन्यभागे चतुष्पदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा दो उप एसिया खंधा भवंति' अथवा चतुष्प्रदेशिक दो स्कन्ध होते हैं 'तिहा कज्जमाणे एमओ दो परमाणुवोग्गला, एगधओ छप्पएसिए खंधे मवई' अष्टप्रदेशिक स्कन्ध जब तीन विभाग में किया जाता है - तब एक भाग में अलग अलग दो परमाणु पुद्गल होते हैं, और दूसरे भाग में एक छह प्रदेशिक स्कंध होता है।' अहवा एगयओ परमाणुवोग्गले, एमओ दुप्पएसिए खंधे, एगयओ पंवपएसिए खंधे भवइ ' अथवाएक भाग में परमाणुपुद्गल होता है, दूसरे भाग में द्विप्रदेशिक स्कंध होता है और अन्यभाग में पञ्चप्रदेशिक स्कन्ध होता है ' अहवा एग ओ परमाणुपोग्गले, एगयओ तिप्पएसिए खंधे, एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवइ ' अथवा - एक भाग में परमाणुपुद्गल होता है, दूसरे भाग में त्रिप्रदेशिक स्कंध होता है, तथा अन्यभाग में एक चतुष्प्रदेशिक सिएरा खंधा भवति અથવા ચાર ચાર પ્રદેશિક એ સ્કંધ રૂપ એ વિભાગે પણ સાઁભવી શકે છે. तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एग 66 छप्पएसिए खं भवइ " न्यारे अष्टप्रदेशि संबंधने त्रक्षु विलागोमां વિભક્ત કરવામાં આવે છે, ત્યારે તેના ત્રણ વિભાગે આ પ્રકારના સ’ભવી શકે છે-એક એક પરમાણુ પુદ્ગલવાળા એ વિભાગેા અને છ પ્રદેશિક સ્મુધ રૂપ ત્રીજો વિભાગ अहवा - एगयओ परमाणुपोगले, एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयओ पंच परसिए खंधे भवइ " अथवा એક પરમાણુપુદ્ગલ રૂપ એક વિભાગ, દ્વિપ્રદેશિક સ્કધ રૂપ બીજો વિભાગ અને પચ પ્રદેશિક કધ રૂપ ત્રીજો વિભાગ પણ સભવી શકે છે, “ अहवा एगयओ परमाणुपोगाले, एगओ तिप्पएसिए खंधे, एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवइ પુગલ રૂપ એક વિભાગ, ત્રિપ્રદેશિક કોંધ રૂપ ખીન્ને "" શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦ ܕܕ અથવા-એક પરમાણુ વિભાગ અને ચાર
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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