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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ ३०४ ६०१ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ३९ खंधे भाइ' हे गौतम ! अष्टौ परमाणुपुद्गलाः एकतः संहत्य अष्टप्रदेशिका स्कन्धो मयति, 'जाव दुहा कज्जमाणे एगयो परमाणुपोग्गले, एगयो सत्त पएसिए खंधे भवई' यावत् सो अष्ट प्रदेशिकः स्कन्धो भिद्यमानो द्विधापि, त्रिधापि, चतु. घोपि, पञ्चधापि, षोढापि, सप्तधापि, अष्टधापि भवति, तत्र द्विधा क्रियमाणः एकतः-एक मागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः-अपरभागे सप्तपदेशिकः स्कन्धो माति, 'अहवा एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयओ छप्पएसिए खंधे भवइ' अथवा एकतः-एकभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः-अपरभागे षट्पदेशिकः स्कन्धो भाति, 'अहवा एगयो तिप्पएसिए खंधे, एगयओ पंचपएसिए खंधे मरइ' अथवा एकतः-एकभागे त्रिप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः-अपरभागे लपरमाणुओं के मेल से आठ प्रदेशोंवाला एक स्कंध होता है-' जाव दुहा कज्जमाणे परमाणुमेग्गले, एगयओ सत्त पएसिए खंधे भव' जब इस अष्टप्रदेशिक स्कंध के विभाग किये जाते हैं-तब इसके दो, तीन, चार, पांच, छह, सात, और आठ विभागतक भी होते हैं जब इसे दो प्रकार से विभाग किया जाता है-तब एक भाग में एक परमागुपुद्गल होता है और दूसरे भाग में सप्तप्रदेशिक स्कंध होता है । 'अहवा-एगयओ दुप्पएसिए खंधे एगयओ छप्पएसिए खंधे भवाइ' अथवा-एक भाग में द्विप्रदेशिक स्कन्ध होता है और दूसरे भाग में छह प्रदेशिक स्कन्ध होता है । 'अहवा-एगयओ तिप्पएसिए खंधे एगपओ पंच पएसिए खंधे भवइ' अथवा-एक भाग में एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होता है, और दूसरे भागमें एक पंचप्रदेशिक स्कंध होता है।
भवह " मा ५२मा पानी में भी साथै सयौ याथी मा
शि मे २४५ मने छे. “जाव दुहा कन्जमाणे परमाणुपोग्गले, एगयओ सत्त पएसिए खंधे भवइ" न्यारे मा अष्टप्रशिs २४ धना विलास ४२वामा આવે છે, ત્યારે તે બે, ત્રણ, ચાર, પાંચ, છ, સાત અથવા આઠ વિભાગમાં વિભક્ત થઈ જાય છે. જ્યારે તેના બે વિભાગ કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક વિભાગમાં એક પરમાણુ પુદ્ગલ હોય છે અને બીજો વિભાગ સપ્તપ્રાદેશિક २४५ ३५ डीय छ. " अहवा-एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगएओ छप्पएसिए खंधे भव" मया से लाभ द्विप्रशि४ २४ ३५ डाय छ भने भी लाम छ प्रशि: २४५३५ डाय छे. " अहवा एगयओ तिप्पपसिए खंघे, एगयओ पंचपएसिए खंधे भवइ" मा से लाग निशि : २४५ ३५ सय भने माने n पाय प्रशि: २४५ ३५ डाय . “ अहवा दो चउपए
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦