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भगवतीस्त्र भवति' अथवा एकतः-एकभागे त्रयः परमाणुपुद्गलाः भवन्ति, एकतः-अपरभागे द्वौ द्विप्रदेशिको स्कन्धौ भवतः, 'छहा कज्जमाणे एगयो पंचपरमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंचे भवइ ' षोढा क्रियमाणः सप्तपदेशिकः स्कन्धः, एकत:एकभागे पञ्चपरमाणुपुद्गला भवन्ति, एकतः-अपरभागे द्विप्रदेशिक: स्कन्धो भवति, 'सत्तहा कज्जमाणे सत्तपरमाणुपोग्गला भवंति, सप्तपदेशिकः स्कन्धः सप्तधा क्रियमाणः सप्त परमाणुपुदलाः भवन्ति । गौतमः पृच्छति-'अट्ट भंते ! परमाणुपोग्गला पुच्छा' हे भदन्त ! अष्टौ परमाणुपुद्गलाः एकतः संहन्यन्ते, एकतः संहत्य किं स्वरूपं वस्तु भवति ? इति पृच्छा, भगवानाह-'गोयमा ! अट्ट पएसिए पुद्गल होते हैं और दूसरे भाग में दो द्विप्रदेशिक स्कंध होते हैं। 'छहा कज्जमाणे एगयओ पंच परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ, जब सप्तप्रदेशिक स्कन्ध छ प्रकार से किया जाता है-तब इसके एक भाग में पांच परमाणुपुद्गल होते हैं, और दूसरे भाग में एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध होता है । सत्तहा कज्जमाणे सत्त परमाणुपोग्गला भवति' सप्तप्रदेशिक स्कंध जब सात प्रकार से विभक्त किया जाता है-तय सात पुदगल परमाणु होते हैं।
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'अट्ठ भंते ! परमाणुपोग्गला पुच्छा' हे भदन्त ! आठ परमाणु पुद्गल जब आपस में मिलते हैं तब इनके मिलाप से कौन सी वस्तु उत्पन्न होती है-इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम! 'अपएसिए खंधे भवइ' आठ पुद्ग
खंधा भवति" अथवा मे मे ५२मा पुला त्रय विमा भने દ્વિશિક બે કંધ રૂપ બે વિભાગો મળીને કુલ પાંચ વિભાગમાં તે વિભ. पोय . " छहा कज्जमाणे एगय ओ पंच परमाणुपोग्गला, एगयओ
पासिए खंधे भवइ" यारे सतप्रशि: २४५ छ विभागोमा Hिsd કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પરમાણુ પુંગલવાળા પાંચ વિભાગે અને ઢિપ્રદેશિક સ્કંધ રૂપ એક વિભાગ, આ પ્રકારે છ વિભાગે થઈ જાય છે. " सत्तहा कज्जमाणे सत्त परमाणु पोग्गला भवंति" न्यारे ससप्रशियन સાત વિભાગમાં વિભક્ત કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પરમાણુ પુરાલવાળા સાત વિભાગમાં તે સ્કંધ વિભકત થઈ જાય છે.
गीतमस्वाभीनी प्रल-" अटू भंते ! परमाणुपोग्गला पुच्छा". ल. વસ આઠ પરમાણુ પુદ્ગલોને જયારે પરસ્પરની સાથે સંગ થાય છે. ત્યારે તેમના સંગથી કઈ વસ્તુ ઉત્પન્ન થાય છે?
महावीर प्रभुने। उत्तरे-" गोयमा !" गौतम ! “अदुपएसिए खंधे
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦