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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१२ उ०४०१ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ३७ मपति, 'अहवा एगयो दो परमाणुपोग्गला, एगयो दुप्पएसिए खंधे, पगयओ तिप्पएसिए खंधे भवई' अथवा एकतः-एकभागे द्वौ परमाणुपुद्गलौ भवतः, एकतः अपरभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकत:-अन्यमागे त्रिप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयो परमाणुपोग्गले एगयओ तिमि दुप्पएसिया खंधा भवंति,' अथवा एकत:-एकमागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः- अपरभागे त्रयो द्विपदेशिकाः स्कन्धाः भवन्ति, "पंचहा कज्जमाणे एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयो तिप्पएसिए खंधे भवई' सप्तपदेशिकः स्कन्धः पञ्चधा क्रियमाणः, एकतःएकभागे चत्वारः परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकत:-अपरभागे त्रिपदेशिकः स्कन्धो मवति, अहवा एगयओ तिनि परमाणुपोग्गला, एगयओ दो दुप्पएसिया खंधा ग्गला, एगयो दुप्पएसिए खंधे, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवड' अथवा-एक विभाग में दो परमाणुपुद्गल होते हैं, और दूसरे भाग में एक द्विप्रदेशिक स्कंध होता है, तथा अन्यभाग में एक त्रिप्रदेशिक स्कंध होता है । ' अहवा-एगयो परमाणुपोग्गले, एगयओ तिनि दुप्पएसिया, खंधा भवंति' अथवा-एक भाग में एक परमाणुगुद्गल होता है, और दूसरे भाग में तीन द्विप्रदेशिक स्कंध होते हैं-'पंचहा कज्जमाणे एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवइ' सप्तप्रदेशिक स्कंध जब पांच प्रकार से विभक्त किया जाता है तब एक प्रकार में चार परमाणुपुद्गल होते हैं, और दूसरे प्रकार में एक त्रियदे. शिक स्कन्ध होता है। 'अहवा एगयो तिनि परमाणुपोग्गला, एगयो दो दुप्पएसिया खंधा भवंति' अथवा-एक भाग में तीन परमाणुपोगला, एगयो दुप्पएसिए खंधे, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवइ " अथवा એક એક પરમાણુ પુદ્ગલવાળા બે વિભાગે, બે પ્રદેશવાળે એક સ્કંધ અને त्रिशिर २५, २॥ यार विभाग ५: छ. "अहवा-एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ तिन्नि दुप्पएसिया, खंधा भवंति" अथवा र ५२માણુ યુગલવાળે એક વિભાગ અને દ્વિપ્રદેશિક ત્રણ કંધ રૂપ ત્રણ વિભાગમાં તે વિભકત થઈ જાય છે. "पंचहा कज्जमाणे एगयओ चत्तारि परमाणुपोंग्गला, एगया तिप्पएसिए खंधे भव" समशि२४ घने न्यारे पांय विभागमा वित કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પરમાણુ યુદ્ગલવાળા ચાર વિભાગ અને ત્રિપ્રદેશિક સ્કંધ રૂપ એક વિભાગ, આ પ્રકારના ચાર વિભાગે થઈ 14 छ. “ अहवा--एगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला, एगयओ दो दुप्पएसिया શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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