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________________ ४२ भगवतीस्ने एकतः - अपरभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः - अन्यभागे चतुष्पदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ दो परमाणुपोग्गले, एगयओ दो दुप्पएसिया धा, एगयओ तिप्पसिए खंधे भवइ' अथवा एकतः - एकभागे द्वि परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः - अपरभागे द्वौ द्विपदेशिकौ स्कन्धौ भवतः, एकतः - अन्यभागे त्रिप देशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा चत्तारि दुप्पएसिया खंधा भवंति ' अथवा चत्वारः द्विपदेशिकाः स्कन्धाः भवन्ति, 'पंचहा कज्जमाणे एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, ears चप्प सिए खंधे भवइ' अष्टम देशिकः स्कन्धः पञ्चधा क्रियमाणः एकत:एकभागे चत्वारः परमाणुपुद्गलाः भवन्ति, एकतः - अपरभागे चतुष्पदेशिकः दूसरे भाग में एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध होता है, और अन्यभाग में एक चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध होता है । 'अहवा - 'एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एमओ दो तिप्पएसिया खंधा भवंति' अथवा एकभाग में दो परमाणुपुद्गल होते हैं और दूसरे भाग में दो त्रिदेशिक स्कन्ध होते हैं। 'अहवा - एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दो दुप्पसिया खंधा' एगयओ तिप्पसिए खंधे भवइ' अथवा एक विभाग में एक परमाणुपुगल होता है, दूसरे भाग में दो द्विप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं और अन्य भाग में एक त्रिप्रदेशिक स्कंन्ध होता है। 'अहवा चत्तारि दुष्पसिया खंधा भवंति' अथवा चार द्विप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं ।, “पंचहा कज्जमाणे' एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवई' यह अष्टप्रदेशिक स्कन्ध जब पांच भागों में विभक्त किया जाता है तब एक भाग में चार परमाणुपुगद्ल होते हैं' और दूसरे भाग में एक चतु (6 શિક કધ રૂપ એક વિભાગ અને ચાર પ્રદેશિક સ્ક`ધ રૂપ એક વિભાગ પણ सलवी शडे छे. अहवा અથવા एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ दो तिप्पएसिया खंधा भवंति " भेड मे परमाणु युगल ३५ मे विलागी અને ત્રિપ્રદેશિક એ સ્કંધ રૂપ એ વિભાગેા પણ સ'ભવી શકે છે. 66 अहवापरमाणुपोग्गले, एगय ओो दो दुप्पएसिया खंधा, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवइ અથવા એક પરમાણુ પુદ્ગલવાળા એક વિભાગ, દ્વિપ્રદેશિક એ સ્કંધ રૂપ એ વિભાગા અને ત્રિપ્રદેશિક એક સ્કૉંધ રૂપ એક વિભાગ, આ પ્રકારના ચાર વિભાગા પણ સ‘ભવી શકે છે, ૮૮ अहवा चत्तारि दुप्पएसिया खंवा भवंति ” अथवा द्विअहेशिङ थार २४६ ३५ यार विभाग पशु सलवी शठे छे. ܕܕ " " पंचा कज्जमाणे, एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ चउप्पएसिए खधे भवइ " ते अष्टप्रदेशि स्वधना न्यारे यांय विलागो वामां શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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